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[समवायाङ्गसूत्र कषायों को जीतने से स्वयं जिन हैं, और दूसरों के भी विषय-कषायों को छुड़ाने से और उन पर विजय प्राप्त कराने का मार्ग बताने से ज्ञापक हैं या जय-प्रापक हैं। स्वयं संसार-सागर से उत्तीर्ण हैं और दूसरों के उत्तारक हैं। स्वयं बोध को प्राप्त होने से बुद्ध हैं और दूसरों को बोध देने से बोधक हैं। स्वयं कर्मों से मुक्त हैं और दूसरों के भी कर्मों के मोचक हैं। जो सर्व जगत् के जानने से सर्वज्ञ और सर्वलोक के देखने से सर्वदर्शी हैं। जो अचल, अरुज, (रोग-रहित) अनन्त, अक्षय, अव्याबाध (बाधाओं से रहित) और पुनः आगमन से रहित ऐसी सिद्ध-गति नाम के अनुपम स्थान को प्राप्त करने वाले हैं। ऐसे उन भगवान् महावीर ने यह द्वादशाङ्ग रूप गणिपिटक कहा है।
वह इस प्रकार है-आचाराङ्ग १,सूत्रकृताङ्ग २,स्थानाङ्ग ३,समवायाङ्ग ४, व्याख्याप्रज्ञप्ति-अङ्ग ५, ज्ञाताधर्मकथाङ्ग ६, उपासकदशाङ्ग ७, अन्तकृतदशाङ्ग ८, अनुत्तरौपपातिकदशाङ्ग ९, प्रश्नव्याकरणांग १०, विपाकसूत्रांग ११ और दृष्टिवादांग १२।
विवेचन- श्रमण भगवान् महावीर ने अपनी धर्मदेशना में जिस बारह अंगरूप गणिपिटक का उपदेश दिया, उसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है
१. आचाराङ्ग–में साधुजनों के ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य, इन पांच प्रकार के आचारधर्म का विवेचन है।
२. सूत्रकृताङ्ग–में स्वमत, पर-मत और स्व-पर-मत का विवेचन किया गया है, तथा जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध और मोक्ष इन नौ पदार्थों का निरूपण है।
३. स्थानाङ्ग–में एक से लेकर दश स्थानों के द्वारा एक-एक, दो-दो आदि की संख्या वाले पदार्थों या स्थानों का निरूपण है।
४. समवायाङ्ग–में एक, दो आदि संख्यावाले पदार्थों से लेकर सहस्रों पदार्थों के समुदाय का निरूपण है।
५. व्याख्याप्रज्ञप्ति-अंग-में गणधर देव के द्वारा पूछे गये ३६ हजार प्रश्नों का और भगवान् के द्वारा दिये गये उत्तरों का संकलन है।
६.ज्ञाताधर्मकथाङ्ग–में परीषह-उपसर्ग-विजेता पुरुषों के अर्थ-गर्भित दृष्टान्तों एवं धार्मिक पुरुषों के कथानकों का विवेचन है।
७. उपासकदशाङ्ग–में उपासकों (श्रावकों) के परम धर्म का विधिवत् पालन करने और अन्त समय में संलेखना की आराधना करने वाले दश महाश्रावकों के चरित्रों का वर्णन है।।
८.अंतकृत्दशाङ्ग-में महाघोर परीषह और उपसर्ग सहन करते हुए केवल-ज्ञानी हो अन्तर्मुहूर्त के भीतर ही कर्मों का अन्त करने वाले महान् अनगारों के चरितों का वर्णन है।
९. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्ग–में घोर-परीषह सहन कर और अन्त में समाधि से प्राण त्याग कर पंच अनुत्तर महाविमानों में उत्पन्न होने वाले अनगारों का वर्णन है।
१०. प्रश्नव्याकरणाङ्ग–में स्वसमय, पर-समय, और स्व-परसमय-विषयक प्रश्नों का, मन्त्र