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एकादशस्थानक - समवाय ]
एकादशस्थानक - समवाय
७१ – एक्कारस उवासगपडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - दंसणसावर १, कयव्वयकम्मे २, सामाइयकडे ३, पोसहोववासनिरए ४, दिया बंभयारी रत्तिं परिमाणकडे ५, दिआ वि राओ वि बंभयारी असिणाई वियडभोजी मोलिकडे ६, सचित्तपरिण्णाए ७, आरंभपरिण्णाए ८, पेसपरिण्णाए ९, उद्दिभत्तपरिण्णाए १०, समणभूए ११, आवि भवइ समणाउसो !
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हे आयुष्मान् श्रमणी ! उपासकों श्रावकों की ग्यारह प्रतिमाएं कही गई हैं । जैसे – दर्शन श्रावक १, कृतव्रतकर्मा २, सामायिककृत ३, पौषधोपवास- निरत ४, दिवा ब्रह्मचारी, रात्रि - परिमाणकृत ५, दिवा ब्रह्मचारी भी रात्रि - ब्रह्मचारी भी, अस्नायी विकट - भोजी और मौलिकृत ६, सचित्तपरिज्ञात ७, आरम्भपरिज्ञात ८. प्रेष्यपरिज्ञात ९, उद्दिष्टपरिज्ञात १०, और श्रमणभूत ११ ।
विवेचन - जो श्रमणों – साधुजनों की उपासना करते हैं, उन्हें श्रमणोपासक या उपासक कहते हैं । उनके अभिग्रहरूप विशेष अनुष्ठान या प्रतिज्ञा को प्रतिमा कहा जाता है। उपासक या श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का स्वरूप इस प्रकार है
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१. दर्शनप्रतिमा - में उपासक को शंकादि दोषों से रहित निर्मल सम्यग्दर्शन को धारण करना आवश्यक है, क्योंकि यह सर्व धर्मों का मूल है, इसके होने पर ही व्रतादि का परिपालन हो सकता है, अन्यथा नहीं ।
यहां यह ज्ञातव्य है कि उत्तर- उत्तर प्रतिमाधारियों को पूर्व-पूर्व प्रतिमाओं के आचार का परिपालन करना आवश्यक है ।
२. व्रतप्रतिमा - में निरतिचार पांच अणुव्रतों और उनकी रक्षार्थ तीन गुणव्रतों का परिपालन करना चाहिए ।
३. सामायिक प्रतिमा में नियत काल के लिए प्रतिदिन दो बारका परित्याग कर सामायिक करना आवश्यक है।
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-प्रात: सायंकाल सर्व सावद्ययोग
४. पौषधोपवासप्रतिमा - में अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्वों के दिन सर्व प्रकार के आहार का त्याग कर उपवास के साथ धर्मध्यान में समय बिताना आवश्यक है ।
५. पांचवीं प्रतिमा का धारक उपासक दिन को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता है और रात्रि में भी स्त्री अथवा भोग का परिमाण करता है और धोती की कांछ (लांग) नहीं लगाता है ।
६. छठी प्रतिमा का धारक दिन और रात्रि में ब्रह्मचर्य का पालन करता है, अर्थात् स्त्री-सेवन का त्याग कर देता है, यह स्नान भी नहीं करता, रात्रि - भोजन का त्याग कर देता है और दिन में भी प्रकाशयुक्त स्थान में भोजन करता है।
७. सातवीं प्रतिमा का धारक सचित्त वस्तुओं के खान-पान का त्याग कर देता है ।
८. आठवीं प्रतिमा का धारक खेती, व्यापार आदि सर्वप्रकार के आरम्भ का त्याग कर देता है । ९. नवमी प्रतिमा का धारक सेवक- परिजनादि से भी आरम्भ कार्य कराने का त्याग कर देता है।