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[ समवायाङ्गसूत्र
नवस्थानक - समवाय
५१ – नव बंभचेरगुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - नो इत्थि - पसु -पंडगसंसत्ताणि सिज्जासणाणि सेवित्ता भवइ १, नो इत्थीणं कहं कहित्ता भवइ २, नो इत्थीणं गणाई सेवित्ता भवइ ३, नो इत्थीणं इंदियाणि मणोहराई मणोरमाइं आलोइत्ता निज्झाइत्ता भवइ ४, नो पणीयरसभोई भवइ ५, नो पाणभोयणस्स अइमायायाए आहारइत्ता भवइ ६, नो इत्थीणं पुव्वरयाई पुव्वकीलिआई समरइत्ता भवइ ७, नो सद्दाणुवाई, नो रूवाणुवाई, नो गंधाणुवाई, नो रसाणुवाई, नो फासाणुवाई, नो सिलोगाणुवाई भवइ ८, नो सायासोक्खपडिबद्धे यावि भवइ ९ ।
ब्रह्मचर्य की नौ गुप्तियां (संरक्षिकाएं ) कही गई हैं, जैसे- स्त्री, पशु और नपुंसक से संसक्त शय्या और आसन का सेवन नहीं करना १, स्त्रियों की कथाओं को नहीं कहना २, स्त्रीगणों का उपासक नहीं होना ३, स्त्रियों की मनोहर इन्द्रियों और रमणीय अंगों का द्रष्टा और ध्याता नहीं होना ४, प्रणीत-रसबहुल भोजन का नहीं करना ५, अधिक मात्रा में खान-पान या आहार नहीं करना ६, स्त्रियों के साथ की गई पूर्व रति और पूर्व क्रीड़ाओं का स्मरण नहीं करना ७, कामोद्दीपक शब्दों को नहीं सुनना, कामोद्दीपक रूपों को नहीं देखना, कामोद्दीपक गन्धों को नहीं सूंघना, कामोद्दीपक रसों का स्वाद नहीं लेना, कामोद्दीपक कोमल मृदुशय्यादि का स्पर्श नहीं करना ८, और सातावेदनीय के उदय से प्राप्त सुख में प्रतिबद्ध (आसक्त ) नहीं होना ९ ।
विवेचन - ब्रह्मचारी पुरुषों को अपने ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए उक्त नौ प्रकार के कार्यों का सेवन नहीं करना चाहिए, तभी उनके ब्रह्मचर्य की रक्षा हो सकती है । आगम में ये शील की नौ वाड़ों के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। जिस प्रकार खेत की बाड़ उसकी रक्षक होती है, उसी प्रकार उक्त नौ वाड़ें ब्रह्मचर्य . की रक्षक हैं, अतएव इन्हें ब्रह्मचर्य - गुप्तियां कहा गया है।
५२ - नव बंभेचर - अगुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - इत्थी - पसु-पंडगसंसत्ताणं सिज्जासणाणं सेवित्ता भवइ १, इत्थीणं कहं कहित्ता भवइ २, इत्थीणं गणाई सेवित्ता भवइ ३, इत्थीणं इंदियाणं मणोहराई मणोरमाइं आलोइत्ता निज्झाइत्ता भवइ ४, पणीयरसभोई भवति ५, पाण-भोयणस्स अइमायाए आहारइत्ता भवइ ६, इत्थीणं पुव्वरयाइं पुव्वकेलिआइं समरइत्ता भवइ ७, सद्दाणुवाई रूवाणुवाई गंधाणुवाई रसाणुवाई फासाणुवाई सिलोगाणुवाई भवइ ८, सायासुक्खपडिबद्धे यावि भवइ ९ ।
ब्रह्मचर्य की नौ अगुप्तियाँ (विनाशिकाएं ) कही गई हैं, जैसे- स्त्री, पशु और नपुंसक से संसक्त शय्या और आसन का सेवन करना १ स्त्रियों की कथाओं को कहना - स्त्रियों सम्बन्धी बातें करना २, स्त्रीगणों का उपासक होना ३, स्त्रियों की मनोहर इन्द्रियों और मनोरम अंगों को देखना और उनका चिन्तन करना ४, प्रणीत-रस-बहुल गरिष्ठ भोजन करना ५, अधिक मात्रा में आहारपान करना ६, स्त्रियों के साथ कई पूर्व रति और पूर्व क्रीड़ाओं का स्मरण करना ७, कामोद्दीपक शब्दों को सुनना, कामोद्दीपक रूपों को देखना, कामोद्दीपक गन्धों को सूंघना, कामोद्दीपक रसों का स्वाद लेना, कामोद्दीपक कोमल मृदुशय्यादि का स्पर्श करना ८, और सातावेदनीय के उदय से प्राप्त सुख में प्रतिबद्ध (आसक्त) होना ९ ।
भावार्थ - इन उपर्युक्त नवों प्रकार के कार्यों के सेवन से ब्रह्मचर्य नष्ट होता है, इसलिए इनको