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चतुश्चत्वारिंशत्स्थानक समवाय पञ्चचत्वारिंशत्स्थानक समवाय षट्चत्वारिंशत्स्थानक समवाय
दृष्टिवाद के मातृकापद, प्रभंजनेन्द्र के भवनावास। सप्तचत्वारिंशत्स्थानक समवाय
सूर्य का दृष्टिगोचर होना, अग्निभूति का गृहवास। अष्टचत्वारिंशस्त्स्थानक समवाय
चक्रवर्ती के पट्टन, धर्म जिन के गण और गणधर, सूर्यमंडल का विस्तार। एकोनपंचाशत्स्थानक समवाय
भिक्षुप्रतिमा, देवकुरु-उत्तरकुरु के मनुष्य, त्रीन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट स्थिति। पंचाशत्स्थानक समवाय
११४ मुनिसुव्रत जिन की आर्याएँ, दीर्घवैताढ्यों का विष्कंभ, लान्तककल्प के विमानावास, तिमिस्र
खण्डप्रपात गुफाओं की लम्बाई, कांचनक पर्वतों का विस्तार। एकपंचाशत्स्थानक समवाय
११५ आचारांग-प्रथम श्रुतस्कन्ध के उद्देशनकाल, चमरेन्द्र की सुधर्मा सभा, सुप्रभ बलदेव का आयुष्य,
उत्तर कर्म-प्रकृतियाँ। द्विपंचाशत्स्थानक समवाय
मोहनीय कर्म के नाम, गोस्तूभ आदि पर्वतों का अन्तर, कर्मप्रकृतियाँ, सौधर्म-सनत्कुमार माहेन्द्र
के विमानावास। त्रिपंचाशत्स्थानक समवाय
११७ देवकुरु आदि की जीवाएँ, भ. महावीर के श्रमणों का अनुत्तरविमानों में जन्म, संमूर्छिम
. उरपरिसों की उत्कृष्ट स्थिति। चतुःपंचाशत्स्थानक समवाय
११७ महापुरुषों का जन्म, अरिष्टनेमि की छद्मस्थपर्याय, भ. महावीर द्वारा एक दिन में ५४
व्याख्यान, अनन्त जिन के गण, गणधर। पंचपंचाशत्स्थानक समवाय
मल्ली अर्हत् का आयुष्य, मन्दर और विजयादि द्वारों का अन्तर, भ. महावीर द्वारा पुण्य
पापविपाकदर्शक अध्ययनों का प्रतिपादन, नारकावास, कर्मप्रकृतियाँ। षट्पंचाशत्स्थानक समवाय
नक्षत्रयोग, विमल जिन के गण और गणधर। सप्तपंचाशत्स्थानक समवाय
११९ तीन गणिपिटक के अध्ययन, गोस्तूभ पर्वत और महापातल का अन्तर, मल्ली जिन के मनःपर्यवज्ञानी, महाहिमवन्त और रुक्मि पर्वतों की जीवा का धनुः पृष्ठ ।
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