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तीसरे समवाय के प्रथम सूत्र में तीन दण्डों का निरूपण है-तो उत्तराध्ययन०२४ में भी वह वर्णन है। तीसरे समवाय के दूसरे सूत्र में तीन गुप्तियों का उल्लेख है तो उत्तराध्ययन २५ में भी गुप्तियों का वर्णन प्राप्त
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तीसरे समवाय के तीसरे सूत्र में तीन शल्यों का वर्णन है.तो उत्तराध्ययन २६ में भी शल्यों का वर्णन प्राप्त
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पांचवें समवाय के सातवें सूत्र में पांच समिति के नाम दिये गये हैं। उत्तराध्ययन २७ में उन पर विस्तार से निरूपण है।
छठे समवाय का तीसरे और चौथे सूत्र में बाह्य और आभ्यन्तर तप का वर्णन है। उत्तराध्ययन०२८ में भी वह प्राप्त है।
सातवें समवाय के प्रथम सूत्र में सप्त भयस्थानों का निरूपण किया गया है, उत्तराध्ययन २९ में भी उनके सम्बन्ध में संकेत है।
आठवें समवाय के प्रथम सूत्र में आठ मदस्थानों की चर्चा है तो उत्तराध्ययन७३० में उनका सूचन है। आठवें समवाय के दूसरे सूत्र में अष्ट प्रवचनमाताओं के नाम हैं, उत्तराध्ययन ३१ में भी उनका निरूपण है। नवमें समवाय के प्रथम सूत्र में नव ब्रह्मचर्य-गुप्तियाँ निरूपित हैं तो उत्तराध्ययन ३२ में भी यह विषय चर्चित
नवमें समवाय के ग्यारहवें सूत्र में दर्शनावरणीय कर्म की नौ प्रकृतियाँ बतायी हैं तो उत्तराध्ययन ३३ में भी उनका कथन है।
दशवें समवाय के प्रथम सूत्र में श्रमण के दश धर्मों का वर्णन है, तो उत्तराध्ययन ३४ में भी उनका संकेत
ग्यारहवें समवाय के प्रथम सूत्र में उपासक की ग्यारह प्रतिमाओं का निरूपण है तो उत्तराध्ययन७३५ में भी संक्षेप में सूचन है।
७२४. ७२५. ७२६. ७२७. ७२८. ७२९. ७३०. ७३१. ७३२. ७३३. ७३४. ७३५.
उत्तराध्ययन-अ. ३१ उत्तराध्ययन-अ. २४ उत्तराध्ययन-अ. ३१ उत्तराध्ययन-अ. २४ उत्तराध्ययन-अ. ३० उत्तराध्ययन-अ. ३१ उत्तराध्ययन-अ. ३१ उत्तराध्ययन-अ. २४ उत्तराध्ययन-अ. ३६ उत्तराध्ययन-अ. ३३ उत्तराध्ययन-अ.३१ उत्तराध्ययन-अ. ४१
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