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करता
चालीसवें समवाय के छठे सूत्र में फाल्गुन पूर्णिमा के दिन सूर्य चालीस अंगुलप्रमाण पौरुषी छाया करके गति । यह वर्णन सूर्यप्रज्ञप्ति १५ में भी है।
पैंतालीसवें समवाय के सातवें सूत्र में डेढ़ क्षेत्र वाले सभी नक्षत्र चन्द्र के साथ पैंतालीस मुहूर्त का योग करते हैं। यह वर्णन सूर्यज्ञसि७१६ में भी है।
छप्पनवें समवाय के प्रथम सूत्र में जम्बूद्वीप में छप्पन नक्षत्रों ने चन्द्र के साथ योग किया व करते हैं, यही वर्णन सूर्यप्रज्ञप्ति१७ में भी उपलब्ध होता है।
बासठवें समवाय के प्रथम सूत्र में वर्णन हैं कि पाँच संवत्सर वाले युग की बासठ पूर्णिमाएँ और बासठ अमावस्याएँ होती हैं, यह वर्णन सूत्रप्रज्ञप्ति ७१८ में भी है।
इकहत्तरवें समवाय के प्रथम सूत्र में वर्णन है कि चौथे चन्द्र-संवत्सर की हेमन्त ऋतु के इकहत्तर अहोरात्र व्यतीत होने पर सर्वबाह्य मण्डल से सूर्य पुनरावृत्ति करता है। यही वर्णन सूर्यप्रज्ञप्ति १९ में प्राप्त है ।
बहत्तरवें समवाय का पाँचवां सूत्र है, पुष्करार्ध द्वीप में बहत्तर चन्द्र व सूर्य प्रकाश करते हैं। यही वर्णन सूर्यप्रज्ञप्ति २० में भी है।
अठासीवें समवाय के प्रथम सूत्र में वर्णन है कि प्रत्येक चन्द्र, सूर्य का अठासी अठासी ग्रह का परिवार है । यही वर्णन सूर्यप्रज्ञप्ति २१ में भी प्राप्त होता है।
अठानवेंवे समवाय के चतुर्थ सूत्र से लेकर सातवें सूत्र तक जो वर्णन है, वह सूर्यप्रज्ञप्ति २२ में भी इसी तरह मिलता है।
इस तरह सूर्यप्रज्ञप्ति के साथ समवायांग के अनेक सूत्र मिलते हैं ।
समवायांग और उत्तराध्ययन
मूल सूत्रों में उत्तराध्ययन का प्रथम स्थान है। यह आगम भाव-भाषा और शैली की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसमें धर्म, दर्शन, अध्यात्म, योग आदि का सुन्दर विश्लेषण हुआ है। हम यहाँ पर संक्षेप में समवायांग में आये हुए विषयों का उत्तराध्ययन आये हुये विषयों के साथ दिग्दर्शन करेंगे, जिससे समवायांग की महत्ता का सहज ही
आभास हो सके।
दूसरे समवाय के तीसरे सूत्र में बन्ध के राग और द्वेष ये दो प्रकार बताये हैं। तो उत्तराध्ययन ७२३ में भी उनका
निरूपण है ।
७१५.
७१६.
७१७.
७१८.
७१९.
७२०.
७२१.
७२२.
७२३.
सूर्यप्रज्ञप्ति - प्रा. १०, सू. ४३
सूर्यप्रज्ञप्ति - प्रा. ३, सू. ३५
सूर्यप्रज्ञप्ति - प्रा. १०, प्रा. २२, सू. ६०
सूर्यप्रज्ञप्ति - प्रा. १३, सू. ८०
सूर्यप्रज्ञप्ति - प्रा. ११
सूर्यप्रज्ञप्ति - प्रा. १९
सूर्यप्रज्ञप्ति - प्रा. १८, सू. ५१
सूर्यप्रज्ञप्ति - प्रा. १, १०, प्रा. ९, सू. ४२
उत्तराध्ययन-अ. २१
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