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बारहवें समवाय के आठवें और नौवें सूत्र में जघन्य रात और दिन बारह मुहूर्त के बताये हैं तो सूर्य-प्रज्ञप्ति७०३ में भी उसका निरूपण हुआ है।
पंद्रहवें समवाय के तीसरे और चौथे सूत्र में ध्रुवराहु का चन्द्र को आवृत और अनावृत करने का वर्णन है तो सूर्यप्रज्ञप्ति०४ में भी वह वर्णन द्रष्टव्य है।
अठारहवें समवाय के आठवें सूत्र में पौष और आषाढ़ मास में एक दिन उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का होता है तथा एक रात्रि अठारह मुहूर्त की होती है। सूर्यप्रज्ञप्ति०५ में भी यही वर्णन उपलब्ध है।
उन्नीसवें समवाय के द्वितीय सूत्र में जम्बूद्वीप में सूर्य ऊंचे और नीचे उन्नीस सौ योजन ताप पहुंचाता है। यही वर्णन सूर्यप्रज्ञप्ति०६ में भी है।
चौबीसवें समवाय के चौथे सूत्र में वर्णन है- उत्तरायण में रहा हुआ सूर्य चौबीस अंगुल प्रमाण प्रथम प्रहर की छाया करके पीछे मुड़ता है। यह वर्णन सूर्यप्रज्ञप्ति७०७ में भी है।
सत्तावीसवें समवाय के दूसरे और तीसरे सूत्र में क्रमशः यह वर्णन है कि जम्बूद्वीप में अभिजित को छोड़कर सत्तावीस नक्षत्रों से व्यवहार होता है और नक्षत्र मास सत्तावीस अहोरात्रि का होता है। यह वर्णन सूर्यप्रज्ञप्ति०८ में भी है।
उनतीसवें समवाय के तीसरे से सातवें तक जो वर्णन है, वह वर्णन सूर्यप्रज्ञप्ति७०९ में भी उपलब्ध है। तीसवें समवाय के तीसरे सूत्र में तीस मुहूर्ता के नाम बताये हैं, वे नाम सूर्यप्रज्ञप्ति १० में भी मिलते हैं।
इकतीसवें समवाय के चौथे और पांचवें सूत्र में क्रमशः अधिक मास कुछ अधिक इकतीस रात्रि का बताया है। और सूर्यमास कुछ न्यून इकतीस अहोरात्रि का बताया है। सूर्यप्रज्ञप्ति०११ में यही है।
बत्तीसवें समवाय के पांचवें सूत्र में रेवती नक्षत्र के बत्तीस तारे बताये हैं तो सूर्यप्रज्ञप्ति१२ में भी यह वर्णन
छत्तीसवें समवाय के चौथे सूत्र में चैत्र और आश्विन मास में एक दिन पौरुषी छाया का प्रमाण छत्तीस अंगुल का होना कहा है तो सूर्यप्रज्ञप्ति १३ में भी यही वर्णन है।
सैंतीसवें समवाय के पांचवें सूत्र में कार्तिक कृष्णा सप्तमी के दिन सूर्य सैंतीस अंगुलप्रमाण पौरुषी छाया करके गति करता है। यह वर्णन सूर्यप्रज्ञप्ति १४ में है। ७०३. सूर्यप्रज्ञप्ति-प्राभृत १, प्रा. १, सूत्र ११ ७०४. सूर्यप्रज्ञप्ति-प्राभृत २०, प्रा. ३, प्रा. सूत्र १०५, सू. ३५ ७०५. सूर्यप्रज्ञप्ति-प्राभृत १, प्रा. ६, सूत्र १८ ७०६. सूर्यप्रज्ञप्ति-प्राभृत ४, प्रा. सूत्र २५ ७०७. सूर्यप्रज्ञप्ति-प्राभृत १०, प्रा. सूत्र ४६ ७०८. सूर्यप्रज्ञप्ति-प्राभृत १०, १२ प्रा. १, सूत्र ३२, ७२ ७०९. सूर्यप्रज्ञप्ति-प्राभृत १२, सूत्र ७२ ७१०. सूर्यप्रज्ञप्ति-प्राभृत १०, प्रा. १३, सूत्र ४७ ७११. सूर्यप्रज्ञप्ति-प्राभृत १२, सूत्र ७२ ७१२. सूर्यप्रज्ञप्ति-प्राभृत प्रा. १०, ९ सूत्र ७२ ७१३. सूर्यप्रज्ञप्ति-प्रा. १०, प्रा. २., सू. ४३ ७१४. सूर्यप्रज्ञप्ति-प्रा. १०, सू. ४३
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