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बारहवें समवाय के पहले सूत्र में भिक्षु की बारह प्रतिमाएं गिनाई हैं तो उत्तराध्ययन३६ में भी उनकी संक्षेप में सूचना है।
सोलहवें समवाय के पहले सूत्र में सूत्रकृतांग के सोलह अध्ययनों के नाम निर्दिष्ट हैं तो उत्तराध्ययन३७ में भी उनका संकेत है।
सत्तरहवें समवाय के प्रथम सूत्र में सत्तरह प्रकार के असंयम बताये हैं, उनका निर्देश उत्तराध्ययन३८ में भी
अठारहवें समवाय के प्रथम सूत्र में ब्रह्मचर्य के अठारह प्रकार बताये हैं, इनका संकेत उत्तराध्ययन७३९ में भी प्राप्त होता है।
उन्नीसवें समवाय के प्रथम सूत्र में ज्ञाताधर्मकथा के उन्नीस अध्ययनों के नाम आये हैं तो उत्तराध्ययन ४० में उनका संकेत है।
बावीसवें समवाय के प्रथम सत्र में बावीस-परीषहों के नाम निर्दिष्ट हैं तो उत्तराध्ययन ४१ में उनका विस्तार से निरूपण है।
तेवीसवें समवाय के प्रथम सूत्र में सूत्रकृतांग के तेईस अध्ययनों के नाम हैं, उत्तराध्ययन ४२ में भी उनका संकेत है।
चौबीसवें समवाय के चौथे सूत्र के अनुसार उत्तरायण में रहा हुआ सूर्य चौबीस अंगुल प्रमाण प्रथम प्रहर की छाया करता हुआ पीछे मुड़ता है, यह वर्णन उत्तराध्ययन ४३ में भी है।
सत्तावीसवें समवाय के प्रथम सूत्र में अनगार के सत्तावीस गुण प्रतिपादित हैं, तो उत्तराध्ययन ४४ में भी उनका
तीसवें समवाय के प्रथम सूत्र में मोहनीय के तीस स्थान बताये हैं, उत्तराध्ययन ४५ में भी इसका निर्देश है। इकतीसवें समवाय के प्रथम सूत्र में सिद्धों के इकतीस गुण कहे हैं, तो उत्तराध्ययन ४६ में भी इनका संकेत
बत्तीसवें समवाय के प्रथम सूत्र में योगसंग्रह के बत्तीस प्रकार बताये हैं, उत्तराध्ययन ४७ में भी उनकी सूचना है।
७३६. ७३७. ७३८. ७३९. ७४०. ७४१. ७४२. ७४३.
उत्तराध्ययन-अ. ३१ उत्तराध्ययन-अ. ३१ उत्तराध्ययन-अ. ३१ उत्तराध्ययन-अ. ३१ उत्तराध्ययन-अ. ३१ उत्तराध्ययन-अ. २ उत्तराध्ययन-अ. ३१ उत्तराध्ययन-अ. २६ उत्तराध्ययन-अ. ३१ उत्तराध्ययन-अ. ३१ उत्तराध्ययन-अ. ३१ उत्तराध्ययन-अ. ३१
७४४.
७४६. ७४७.
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