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अठावनवें समवाय का पहला सूत्र-'पढम-दोच्च-पंचमासु.....' है तो प्रज्ञापना५८६ में भी पहली, दूसरी और पांचवीं इन तीन पृथ्वियों में अठावन लाख नारकावास बताए हैं।
__ अठावनवें समवाय का दूसरा सूत्र-'नाणावरणिाज्जस्स वेयणिय......' है तो प्रज्ञापना में ज्ञानावरणीय, वेदनीय, आयु, नाम और अन्तराय इन पाँच मूल कर्मप्रकृतियों की अठावन उत्तर प्रकृतियां कही हैं।
साठवें समवाय का चतुर्थ सूत्र – 'बलिस्स णं बइरोयणिंदस्स.....' है तो प्रज्ञापना५८८ में भी बलीन्द्र के साठ हजार सामानिक देव बताये हैं।
साठवें समवाय का पांचवाँ सूत्र – 'बंभस्स णं देविंदस्स........' है तो प्रज्ञापना५८९ में भी ब्रह्म देवेन्द्र के साठ हजार सामानिक देव बताये हैं।
साठवें समवाय का छठा सूत्र –'सोहम्मीसाणेसु दोसु........' है तो प्रज्ञापना५९० में भी सौधर्म और ईशान इन दो कल्पों में साठ लाख विमानावास कहे हैं।
बासठवें समवाय का चौथा सूत्र –'सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु......' है तो प्रज्ञापना५९१ में भी सौधर्म और ईशान कल्प के प्रथम प्रस्तट की प्रथम आवलिका एवं प्रत्येक दिशा में बासठ-बासठ विमान हैं।
बासठवें समवाय का पांचवाँ सूत्र-'सव्वे वेमाणियाणं बासटिं....' है तो प्रज्ञापना५९२ में भी सर्व वैमानिक देवों के बासठ विमान प्रस्तट कथित हैं।
चौसठवें समवाय का दूसरा सूत्र-'चउसटिंढ असुरकुमाराणं.....' है तो प्रज्ञापना५९३ में भी चौसठ लाख असुरकुमारावास बताये हैं।
बहत्तरवें समवाय का प्रथम सूत्र-'बावतरि सुवनकुमारावासा.......' है तो प्रज्ञापमा५९४ में भी सुवर्णकुमारावास बहत्तर लाख बताये हैं।
बहत्तरवें समवाय का आठवां सूत्र –'सम्मुच्छिम-खयहर......' है तो प्रज्ञापना५९५ में भी समूच्छिम खेचर तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय की उत्कृष्ट स्थिति बहत्तर हजार वर्ष की बतायी है।
चौहत्तरवें समवाय का चतुर्थ सूत्र-'चउत्थवज्जासु छसु.....' है तो प्रज्ञापना५९६ में भी चौथी पृथ्वी को छोड़कर शेष छह पृथ्वियों में चौहत्तर लाख नारकावास कहे हैं।
छिहत्तरवें समवाय का पहला सूत्र–'छावत्तरि विज्जुकुमारावास.....' है तो प्रज्ञापना५९७ में भी विद्युत् कुमारावास छिहत्तर लाख बताये हैं। ५८६. प्रज्ञापना पद २, सूत्र ८१ ५८७.
प्रज्ञापना पद २३, सूत्र ८१ ५८८. प्रज्ञापना पद २, सूत्र ३१ ५८९. प्रज्ञापना पद २, सूत्र ५३
प्रज्ञापना पद २, सूत्र ३३ ५९१. प्रज्ञापना पद २, सूत्र ४७ ५९२. प्रज्ञापना पद २ ५९३. प्रज्ञापना पद २, सूत्र ४७ ५९४. प्रज्ञापना पद २, सूत्र ४६ ५९५. प्रज्ञापना पद ४, सूत्र ९८ ५९६. प्रज्ञापना पद २ ५९७. प्रज्ञापना पद २, सूत्र ४६
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