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The first sutra of the 48th Samavay - 'Padham-Dochch-Panchamasu...' - also mentions in Prajnapana 586 that there are 48 lakh Naraka-vasas in the first, second and fifth of these three earths.
The second sutra of the 48th Samavay - 'Nanavaranijjass Vevaniya...' - also mentions in Prajnapana that there are 48 Uttar-Prakritis of the five root Karma-Prakritis - Jnana-avaraneya, Vedaniya, Ayu, Nama and Antaraya.
The fourth sutra of the 60th Samavay - 'Baliss Nan Bairoyaniindass...' - also mentions in Prajnapana 588 that there are 60 thousand Samanik Devas of Balindra.
The fifth sutra of the 60th Samavay - 'Bhambass Nan Devindass...' - also mentions in Prajnapana 589 that there are 60 thousand Samanik Devas of Brahma Devendra.
The sixth sutra of the 60th Samavay - 'Sohammisane Doss...' - also mentions in Prajnapana 590 that there are 6 lakh Vimanas in the two Kalpas - Saudharma and Ishana.
The fourth sutra of the 62nd Samavay - 'Sohammisane Kappe...' - also mentions in Prajnapana 591 that there are 62 Vimanas in each direction and in the first Avali of the first Prastut of the Saudharma and Ishana Kalpas.
The fifth sutra of the 62nd Samavay - 'Savve Vemanianam Basatin...' - also mentions in Prajnapana 592 that there are 62 Vimanas in the Prastut of all Vaimanik Devas.
The second sutra of the 64th Samavay - 'Chausatin Asurkumaranam...' - also mentions in Prajnapana 593 that there are 64 lakh Asura-kumara-vasas.
The first sutra of the 72nd Samavay - 'Bavatari Suvanakumara-vasa...' - also mentions in Prajnapana 594 that there are 72 lakh Suvarna-kumara-vasas.
The eighth sutra of the 72nd Samavay - 'Sammuchhim-Khayahar...' - also mentions in Prajnapana 595 that the best state of Samuchhim Khayahar Tiryanch Panchendriya is 72 thousand years.
The fourth sutra of the 74th Samavay - 'Chauthavajjasu Chasu...' - also mentions in Prajnapana 596 that there are 74 lakh Naraka-vasas in the six earths except the fourth earth.
The first sutra of the 76th Samavay - 'Chhavattari Vijjukumara-vasa...' - also mentions in Prajnapana 597 that there are 76 lakh Vidyut-kumara-vasas.
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अठावनवें समवाय का पहला सूत्र-'पढम-दोच्च-पंचमासु.....' है तो प्रज्ञापना५८६ में भी पहली, दूसरी और पांचवीं इन तीन पृथ्वियों में अठावन लाख नारकावास बताए हैं।
__ अठावनवें समवाय का दूसरा सूत्र-'नाणावरणिाज्जस्स वेयणिय......' है तो प्रज्ञापना में ज्ञानावरणीय, वेदनीय, आयु, नाम और अन्तराय इन पाँच मूल कर्मप्रकृतियों की अठावन उत्तर प्रकृतियां कही हैं।
साठवें समवाय का चतुर्थ सूत्र – 'बलिस्स णं बइरोयणिंदस्स.....' है तो प्रज्ञापना५८८ में भी बलीन्द्र के साठ हजार सामानिक देव बताये हैं।
साठवें समवाय का पांचवाँ सूत्र – 'बंभस्स णं देविंदस्स........' है तो प्रज्ञापना५८९ में भी ब्रह्म देवेन्द्र के साठ हजार सामानिक देव बताये हैं।
साठवें समवाय का छठा सूत्र –'सोहम्मीसाणेसु दोसु........' है तो प्रज्ञापना५९० में भी सौधर्म और ईशान इन दो कल्पों में साठ लाख विमानावास कहे हैं।
बासठवें समवाय का चौथा सूत्र –'सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु......' है तो प्रज्ञापना५९१ में भी सौधर्म और ईशान कल्प के प्रथम प्रस्तट की प्रथम आवलिका एवं प्रत्येक दिशा में बासठ-बासठ विमान हैं।
बासठवें समवाय का पांचवाँ सूत्र-'सव्वे वेमाणियाणं बासटिं....' है तो प्रज्ञापना५९२ में भी सर्व वैमानिक देवों के बासठ विमान प्रस्तट कथित हैं।
चौसठवें समवाय का दूसरा सूत्र-'चउसटिंढ असुरकुमाराणं.....' है तो प्रज्ञापना५९३ में भी चौसठ लाख असुरकुमारावास बताये हैं।
बहत्तरवें समवाय का प्रथम सूत्र-'बावतरि सुवनकुमारावासा.......' है तो प्रज्ञापमा५९४ में भी सुवर्णकुमारावास बहत्तर लाख बताये हैं।
बहत्तरवें समवाय का आठवां सूत्र –'सम्मुच्छिम-खयहर......' है तो प्रज्ञापना५९५ में भी समूच्छिम खेचर तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय की उत्कृष्ट स्थिति बहत्तर हजार वर्ष की बतायी है।
चौहत्तरवें समवाय का चतुर्थ सूत्र-'चउत्थवज्जासु छसु.....' है तो प्रज्ञापना५९६ में भी चौथी पृथ्वी को छोड़कर शेष छह पृथ्वियों में चौहत्तर लाख नारकावास कहे हैं।
छिहत्तरवें समवाय का पहला सूत्र–'छावत्तरि विज्जुकुमारावास.....' है तो प्रज्ञापना५९७ में भी विद्युत् कुमारावास छिहत्तर लाख बताये हैं। ५८६. प्रज्ञापना पद २, सूत्र ८१ ५८७.
प्रज्ञापना पद २३, सूत्र ८१ ५८८. प्रज्ञापना पद २, सूत्र ३१ ५८९. प्रज्ञापना पद २, सूत्र ५३
प्रज्ञापना पद २, सूत्र ३३ ५९१. प्रज्ञापना पद २, सूत्र ४७ ५९२. प्रज्ञापना पद २ ५९३. प्रज्ञापना पद २, सूत्र ४७ ५९४. प्रज्ञापना पद २, सूत्र ४६ ५९५. प्रज्ञापना पद ४, सूत्र ९८ ५९६. प्रज्ञापना पद २ ५९७. प्रज्ञापना पद २, सूत्र ४६
५९०.
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