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- समवायांग के उन्नीसवें समवाय का द्वितीय सूत्र –'जंबुद्दीवे णं दीवे.........' है तो भगवती३९९ में भी जम्बूद्वीप में सूर्य ऊँचे तथा नीचे उन्नीस सौ योजन तक ताप पहुँचाते कहे हैं।
समवायांग के उन्नीसवें समवाय का छठा सूत्र-'इमीसे णं रयणप्पहाए........' है तो भगवती४०० में भी रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति उन्नीस पल्योपम की बतायी है।
समवायांग के बीसवें समवाय का सातवाँ सूत्र-'उस्सप्पिणी ओसप्पिणी.........' है तो भगवती ०१ में भी उत्सर्पिणी अवसर्पिणी मिलकर बीस कोटाकोटि सागरोपम का काल-चक्र कहा है।
समवायांग सूत्र के इक्कीसवें समवाय का पाँचवाँ सूत्र -'इमीसे णं रयणप्पहाए.....' है तो भगवती४०२ में भी रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति इक्कीस पल्योपम की बतायी है।
समवायांग के बावीसवें समवाय का प्रथम सूत्र-'बावीसं परीसहा पण्णत्ता........' है तो भगवती४०३ में भी बावीस परीषहों का उल्लेख है।
समवायांग के बावीसवें समवाय का छठा सूत्र-'बावीसविहे पोग्गलपरिणामे....' है तो भगवती४०४ में भी कृष्ण, नील आदि पुद्गल के बाईस परिणाम कहे हैं।
समवायांग के बावीसवें समवाय का सातवाँ सूत्र-'इमीसे णं रयणप्पहाए पुढवीए.......' है तो भगवती४०५ में भी रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की बावीस पल्योपम की स्थिति बतायी है।
समवायांग के तेवीसवें समवाय का छठा सूत्र-'अहे सत्तमाए पुढवीए.......' है तो भगवती४०६ में भी तमस्तमा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति तेवीस सागरोपम की कही है।
समवायांग के तेवीसवें समवाय का सातवाँ सूत्र- 'असुरकुमाराणं देवाणं........' है तो भगवती ०७ में भी असुरकुमार देवों की स्थिति तेवीस पल्योपम की बतायी है।
समवायांग के चौबीसवें समवाय का प्रथम सूत्र –'चउवीसं देवाहिदेव........' है तो भगवती४०८ में भी ऋषभ, अजित, संभव, आदि ये चौबीस देवाधिदेव कहे हैं।
समवायांग के चौबीसवें समवाय का सातवाँ सूत्र-'इमीसे णं रयणप्पहाए.......' है तो भगवती४०९ में भी रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति चौबीस पल्योपम की बतायी है। ३९९. भगवती श. ८ उ.८ ४००. भगवती श. १ उ. १ ४०१. भगवती श. ६ उ. ७ ४०२. भगवती श. १ उ. १ ४०३. भगवती श.८ उ.८ ४०४. भगवती श. ८ उ. १० ४०५. भगवती श. १ उ. १ ४०६. • भगवती श. १ उ.१ ४०७. भगवती श. १ उ. १ ४०८. भगवती श. २ उ. ८ ४०९. भगवती श. १ उ. १
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