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समवायांग के प्रथम समवाय का इकतालीसवां सूत्र-'ते णं देवा......' है तो प्रज्ञापना५२९ में भी सागर यावत् लोकहितविमानों में जो देव उत्पन्न होते हैं, वे एक पक्ष से श्वासोच्छ्वास लेते कहे हैं।
प्रथम समवाय का बयालीसवाँ सूत्र-'तेसि णं देवाणं........' है तो प्रज्ञापना५३० में उन देवों की आहार लेने की इच्छा एक हजार वर्ष से होती है।
दूसरे समवाय का दूसरा सूत्र- 'दुविहा रासी पण्णत्ता.......' है तो प्रज्ञापना५३१ में भी दो राशियों का उल्लेख
दूसरे समवाय के आठवें सूत्र से लेकर बाईसवें सूत्र तक का वर्णन प्रज्ञापना५३२ में भी इसी तरह प्राप्त है। तृतीय समवाय के तेरहवें सूत्र से तेवीसवें सूत्र तक का वर्णन प्रज्ञापना५३३ में भी इसी तरह संप्राप्त है। चतुर्थ समवाय के दशवें सूत्र से सत्तरहवें सूत्र तक का विषय प्रज्ञापना५३४ में भी इसी तरह उपलब्ध होता
पाँचवें समवाय के चौदहवें सूत्र से इक्कीसवें सूत्र तक जिस विषय का प्रतिपादन हुआ है वह प्रज्ञापना५३५ में भी निहारा जा सकता है।
छठे समवाय का पहला सूत्र –'छ लेसाओ पण्णत्ताओ......' है तो प्रज्ञापना५३६ में भी छह लेश्याओं का वर्णन प्राप्त है।
छठे समवाय का दूसरा सूत्र –'छ जीवनिकाया पण्णत्ता......' है तो प्रज्ञापना५३७ में भी वह वर्णन उपलब्ध होता है।
छठे समवाय का पांचवां सूत्र –'छ छाउमत्थिया समुग्घाया पण्णत्ता......' है तो प्रज्ञापना५३८ में भी छाद्मस्थिक समुद्घात के छह प्रकार बताये हैं।
छठे समवाय के दशवें सूत्र से सत्तरहवें सूत्र तक का वर्णन प्रज्ञापना५३९ में भी प्राप्त है।
सातवें समवाय का द्वितीय सूत्र –'सत्त समुग्घाया पण्णत्ता......' है तो प्रज्ञापना५४० में भी सात समुद्घात का उल्लेख हुआ।
५२९. ५३०. . ५३१. ५३२. ५३३. ५३४. ५३५.
प्रज्ञापना- पद ७, सूत्र १४६ प्रज्ञापना-पद २८, सूत्र ३०४ प्रज्ञापना-पद १, सूत्र १ प्रज्ञापना-पद ४, सूत्र ९४, ९५, ९८, ९९, १०२, १०३; पद ७, सूत्र १४६; पद २८, सूत्र ३०३ प्रज्ञापना-पद ४, सूत्र ९४, ९५, ९८, ९९, १०२; पद ७, सूत्र १४६; पद २८, सूत्र ३०६ प्रज्ञापना-पद ४, सूत्र ९४, ९५, ९८, १०२; पद ७, सूत्र १४६; पद २८, सूत्र ३०६ प्रज्ञापना-पद ४, सूत्र ९४, ९५, १०२, पद ७, सूत्र १४६; पद २८, सूत्र ३०६ प्रज्ञापना-पद १७, सूत्र २१४ प्रज्ञापना-पद १, सूत्र १२ प्रज्ञापना-पद ३६, सूत्र ३३१ प्रज्ञापना-पद ४, सूत्र ९४, १०२, १०३; पद ७; सूत्र १४६; पद २८, सू. ३०६ प्रज्ञापना-पद ३६, सूत्र ३३१
५३६.
५३७..
५३८. ५३९. ५४०.
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