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समवायांग के पन्द्रहवें समवाय का ग्यारहवाँ सूत्र - 'सोहम्मीसाणेसु.. और ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति पन्द्रह पल्योपम की कही है।
समवायांग के पन्द्रहवें समवाय का बारहवाँ सूत्र – 'महासुक्के कप्पे ...' है तो भगवती ३९० में भी महाशुक्र कल्प के कुछ देवों की स्थिति पन्द्रह सागरोपम कही है।
समवायांग के सोलहवें समवाय का आठवां सूत्र - इमीसे णं रवणप्पहाए........' है तो भगवती २९१ में भी रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थित सोलह पल्योपम की कही है।
समवायांग के सोलहवें समवाय का नवम सूत्र - 'पंचमीए पुढवीए......' है तो भगवती ३९२ में भी धूमप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति सोलह सागरोपम की बतायी है ।
समवायांग के सत्तरहवें समवाय का छट्टा सूत्र - इमीसे णं रवणप्पहाए........ है तो भगवती ३९३ में रत्नप्रभा पृथ्वी के समभूभाग से कुछ अधिक सत्तरह हजार योजन की ऊँचाई पर जंघाचारण और विद्याचारण मुनियों की तिरछी गति कही है
.' है तो भगवती ३८९ में भी सौधर्म
समवायांग के सतरहवें समवाय का सातवां सूत्र – चमरस्सणं असुरिंदस्स......' है तो भगवती २९४ में भी चरम असुरेन्द्र के तिगिच्छकूट उत्पात पर्वत की ऊँचाई सत्तरह सौ इक्कीस योजन की है।
समवायांग के सत्तरहवें समवाय का आठवां सूत्र - 'सत्तरसविहे मरणे पण्णत्ते.......' है तो भगवती ३९५ में भी मरण के सत्तरह प्रकार बताये हैं।
समवायांग के सत्तरहवें समवाय का ग्यारहवां सूत्र - 'इमीसे णं रयणप्पहाए........' है तो भगवती ३९६ में भी रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति सत्तरह पल्योपम की बतायी है।
समवायांग के अठारहवें समवाय का आठवां सूत्र - 'पोसाऽऽ साढेसु.......' है तो भगवती ३९७ में भी पौष और आषाढ़ मास में एक दिन उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का होता है तथा एक रात्रि अठारह मुहूर्त की होती कही है।
समवायांग के अठारहवें समवाय का नवमा सूत्र - 'इमीसे णं रयणप्पहाए...... ' है तो भगवती ३९८ में भी रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति अठारह पल्योपम की कही है।
३८९. भगवती श. १ उ. १
३९०.
भगवती श. १ उ. १
३९१.
भगवती श. १ उ. १
३९२.
भगवती श. १ उ. १
३९३.
भगवती श. २० उ. ९
३९४.
३९५.
३९६.
३९७.
३९८.
भगवती श. ३ उ.
भगवती श. १३ उ. ७
भगवती श. १ उ. १
१
भगवती श. ११ उ. १
भगवती श. १ उ. १
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