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समवायांग के उन्तीसवें समवाय का पहला सूत्र- 'एगूणतीसविहे पावसुयपसंगे' है तो प्रश्नव्याकरण५४ में भी पापश्रुत के उन्तीस प्रसंग बताये हैं।
___ समवायांग के तीसवें समवाय का प्रथम सूत्र-'तीसं मोहणीयठाणा पण्णत्ता' है तो प्रश्नव्याकरण५५ में भी . मोहनीय के तीस स्थानों का उल्लेख है।
समवायांग के इकतीसवें समवाय का पहला सूत्र-'एक्कतीसं सिद्धाइगुणा पण्णत्ता' है तो प्रश्नव्याकरण४५६ में भी सिद्धों के एकतीस गुण कहे हैं।
समवायांग के तेतीसवें समवाय का पहला सूत्र-'तेत्तीसं आसायणाओ पण्णत्ताओ.......' है तो प्रश्नव्याकरण ५७ में भी तेतीस आशातना का उल्लेख है।
इस तरह समवायांग और प्रश्नव्याकरण के अनेक स्थलों पर समान विषयों का निरूपण हुआ है। समवायांग और औपपातिक
उपांग साहित्य में प्रथम उपांग सूत्र "औपपातिक" है। समवायांग में कुछ विषय ऐसे होते हैं जिनकी सहज रूप से तुलना औपपातिक के साथ की जा सकती है। हम उन्हीं पर यहाँ प्रकाश डाल रहे हैं।
समवायांग के प्रथम समवाय का छठा सूत्र –'एगा अकिरिया' है तो औपपातिक ५८ में भी इसका वर्णन प्राप्त है।
समवायांग के प्रथम समवाय का सातवाँ सूत्र –'एगे लोए' है तो औपपातिक ५६ में भी लोक के स्वरूप का प्रतिपादन है।
समवायांग के प्रथम समवाय का आठवाँ सूत्र –'एगे अलोए' है तो औपपातिक ६० में भी अलोक का वर्णन है।
समवायांग के प्रथम समवाय का ग्यारहवाँ सूत्र – 'एगे पुण्णे' है तो औपपातिक ६१ में भी पुण्य के सम्बन्ध में चिन्तन किया गया है।
समवायांग के प्रथम समवाय का बारहवाँ सूत्र –'एगे पावे' है तो औपपातिक ६२ में भी पाप का वर्णन है। __ समवायांग के प्रथम समवाय में बन्ध, मोक्ष, आस्रव, संवर, वेदना, निर्जरा का कथन है तो औपपातिक ६३ में भी उक्त विषयों का निरूपण हुआ है।
समवायांग के चतुर्थ समवाय का दूसरा सूत्र –'चत्तारि झाणा पण्णत्ता' है तो औपपातिक ६४ में भी ध्यान के इन प्रकारों का निरूपण हुआ है।
४५४. ४५५. ४५६. ४५७. ४५८. ४५९. ४६०.. ४६१. ४६२. ४६३. ४६४.
प्रश्नव्याकरण संवरद्वार प्रश्नव्याकरण संवरद्वार प्रश्नव्याकरण संवरद्वार प्रश्नव्याकरण संवरद्वार औपपातिक २० औपपातिक ५६ औपपातिक ५६ औपपातिक ३४ औपपातिक ३४ औपपातिक ३४ औपपातिक ३०
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