________________
ऊँचे थे तथा दूसरे और चौथे नरक में पैंतीस लाख नारकावास हैं, यह निरूपण है।
___ छत्तीसवें समवाय में-उत्तराध्ययन सूत्र के छत्तीस अध्ययन, असुरेन्द्र की सुधर्मा-सभा छत्तीस योजन ऊँची भगवान् महावीर की छत्तीस हजार आर्यिकाएँ, और चैत्र और आसौज में छत्तीस अंगुल पौरुषी आदि वर्णन है।
सैंतीसवें समवाय में सैंतीस गणधर, सैंतीस गण, अड़तीसवें समवाय में भगवान् पार्श्व की अड़तीस हजार श्रमणियाँ, उन्तालीसवें समवाय में भगवान् नेमिनाथ के उन्तालीस सौ अवधिज्ञानी, चालीसवें समवाय में भगवान् अरिष्टनेमि की चालीस हजार श्रमणियाँ थीं, आदि कथन है। इकतालीसवें समवाय में भगवान् नमिनाथ की ४१ हजार श्रमणियाँ, बयालीसवें समवाय में नामकर्म के ४२ भेद और भगवान् महावीर ४२ वर्ष से कुछ अधिक श्रमण पर्याय पालकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए। तेतालीसवें समवाय में कर्मविपाक के ४३ अध्ययन, चवालीसवें समवाय में ऋषिभाषित के ४४ अध्ययन, पैंतालीसवें समवाय में मानव क्षेत्र, सीमंतक नरकावास, उडु विमान और सिद्धशिला, इन चारों को ४५ लाख योजन विस्तार वाला बताया है। छियालीसवें समवाय में ब्राह्मीलिपि के ४६ मातृकाक्षर, सैंतालीसवें समवाय में स्थविर अग्निभूति के ४७ वर्ष तक गृहवास में रहने का वर्णन है। अड़तालीसवें समवाय में भगवान् धर्मनाथ के ४८ गणों, ४८ गणधरों का, उनचासवें समवाय में तेइन्द्रिय जीवों की ४९ अहोरात्र की स्थिति, पचासवें समवाय में भगवान् मुनिसुव्रत की ५० हजार श्रमणियाँ थीं, आदि वर्णन किया गया है। इक्यावनवें समवाय में ९ ब्रह्मचर्य अध्ययन, ५१ उद्देशनकाल और बावनवें समवाय में मोहनीय कर्म के ५२ नाम बताये हैं। त्रेपनवें समवाय में भगवान् महावीर के ५३ साधुओं के एक वर्ष की दीक्षा के बाद अनुत्तर विमान में जाने का वर्णन है। चौवनवें समवाय में भारत और ऐरवत क्षेत्रों में क्रमश: ५४-५४ उत्तम पुरुष हुए हैं और भगवान् अरिष्टनेमि ५४ रात्रि तक छद्मस्थ रहे। भगवान् अनन्तनाथ के ५४ गणधर थे। पचपनवें समवाय में भगवती-मल्ली ५५ हजार वर्ष की आयु पूर्ण कर सिद्ध हुईं। छप्पनवें समवाय में भगवान् विमल के ५६ गण व ५६ गणधर थे। सत्तावनवें समवाय में मल्ली भगवती के ५७०० मनःपर्यवज्ञानी थे। अट्ठावनवें समवाय में ज्ञानावरणीय, वेदनीय, आयु, नाम और अन्तराय इन पांच कर्मों की ५८ उत्तर प्रकृतियाँ बताई हैं। उनसठवें समवाय में चन्द्रसंवत्सर की एक ऋतु ५९ अहोरात्रि की होती है। साठवें समवाय में सूर्य का ६० 'मुहूर्त तक एक मंडल में रहने का उल्लेख है।
___ इकसठवें समवाय में एक युग के ६१ ऋतु मास बताये हैं। बासठवें समवाय में भगवान् वासुपूज्य के ६२ गण और ६२ गणधर बताये हैं। त्रेसठवें समवाय में भगवान् ऋषभदेव के ६३ लाख पूर्व तक राज्यसिंहासन पर रहने के पश्चात् दीक्षा लेने का वर्णन है। चौसठवें समवाय में चक्रवर्ती के बहुमूल्य ६४ हारों का उल्लेख है। पैंसठवें समवाय में गणधर मौर्यपुत्र ने ६५ वर्ष तक गृहवास में रहकर दीक्षा ग्रहण की। छियासठवें समवाय में भगवान् श्रेयांस के ६६ गण और ६६ गणधर थे। मतिज्ञान की उत्कृष्ट स्थिति ६६ सागर बताई है। सड़सठवें समवाय में एक युग में नक्षत्रमास की गणना से ६७ मास बताये हैं। ६८वें समवाय में धातकीखण्ड द्वीप में चक्रवर्ती की ६८ विजय, ६८ राजधानियाँ
और उत्कृष्ट ६८ अरिहंत होते हैं तथा भगवान् विमल के ६८ हजार श्रमण थे, यह कहा गया है। उनहत्तरवें समवाय में मानवलोक में मेरु के अतिरिक्त ६९ वर्ष और ६९ वर्षधर पर्वत बताये हैं। सत्तरवें समवाय में एक मास और २० रात्रि व्यतीत होने पर ७० रात्रि अवशेष रहने पर भगवान् महावीर ने वर्षावास किया, इसका वर्णन है। यहाँ पर परम्परा से वर्षावास का अर्थ संवत्सरी किया जाता है।
इकहत्तरवें समवाय में भगवान् अजित, चक्रवर्ती सगर ७१ लाख पूर्व तक गृहवास में रह कर दीक्षित हुये। ७२वें समवाय में भगवान् महावीर और उनके गणधर अचलभ्राता की ७२ वर्ष की आयु बतायी है। ७२ कलाओं का भी उल्लेख है। तिहत्तरवें समवाय में विजय नामक बलदेव, ७३ लाख वर्ष की आयु पूर्ण कर सिद्ध हुये। ७४वें समवाय
[५०]