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समवायांग के प्रथम समवाय का पांचवाँ सूत्र है-'एगा किरिया' तो भगवती२५८ में भी योगों की प्रवृत्ति रूप क्रिया एक है।
समवायांग के प्रथम समवाय का छठा सूत्र है 'एगा अकिरया' तो भगवती२५९ में भी योगनिरोधरूप अक्रिया एक मानी है।
समवायांग के प्रथम समवाय का सातवाँ सूत्र है 'एगे लोए' तो भगवती२६० में भी धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों का आधारभूत लोकाकाश एक प्रतिपादित किया है।
समवायांग के प्रथम समवाय का आठवाँ सूत्र है-'एगे अलोए' तो भगवती२६० में भी धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों के अभाव रूप अलोकाकाश का वर्णन है।
समवायांग के प्रथम समवाय का छब्बीसवाँ सूत्र है-'इमीसे णं रयणप्पहाए पुढवीए..... ......................... तो भगवती२६२ में भी रत्नप्रभा नामक पृथ्वी के कुछ नारकों की स्थिति एक पल्योपम की बतायी है।
समवायांग सूत्र के प्रथम समवाय का सत्ताईसवाँ सूत्र है-'इमीसे णं................' तो भगवती२६३ में भी रत्नप्रभा-नारकों की उत्कष्ट स्थिति एक सागरोपम की कही है।
समवायांग के प्रथम समवाय का उनतीसवाँ सूत्र है- 'असुरकुमाराणं देवाणं..............' तो भगवती२६४ में भी असुरकुमार देवों की स्थिति एक पल्योपम की कही है।
समवायांग के प्रथम समवाय का तीसवाँ सूत्र है- 'असुरकुमाराणं................' तो भगवती२६५ में भी उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम की बतायी है।
समवायांग के प्रथम समवाय का इकतीसवाँ सूत्र है-'असुरकुमारिंद.................' तो भगवती२६६ में भी असुरकुमारेन्द्र को छोड़कर कुछ भवनपति देवों की स्थिति एक पल्योपम की कही है।
समवायांग के प्रथम समवाय का बत्तीसवां सूत्र है-'असंखिज्जवासाउय.......... तो भगवती२६७ में भी असंख्य वर्ष की आयु वाले कुछ गर्भज तिर्यंचों की स्थिति एक पल्योपम की बतायी है।
समवायांग के प्रथम समवाय का तेतीसवां सूत्र है-'असंखिज्ज वासाउय.........' तो भगवती२६८ में भी असख्य वर्षों की आयुवाले कुछ गर्भज मनुष्यों की स्थिति एक पल्योपम की बतायी है। २५८. भगवती-शत. १ उ.६ २५९. भगवती-श. २५ उ.७ २६०. भगवती-श. १२ उ.७ २६१. भगवती-श. १२ उ. ७
भगवती-श. १ उ. १ २६३. भगवती-श. १ उ. १ २६४. भगवती-श. १ उ. १ २६५. भगवती-श. १ उ. १ २६६. भगवती-श. १ उ. १ २६७. भगवती-श. १ उ. १ २६८. भगवती-श. १ उ. १
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