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समवायांग के दशवें समवाय का पन्द्रहवाँ सूत्र-'असुरिंदवज्जाणं......' है तो भगवती३४५ में भी असुरेन्द्र को छोड़कर शेष भवनपति देवों की जघन्य स्थिति दश हजार वर्ष की कही है।
समवायांग के दशवें समवाय का सोलहवां सूत्र-'असुरकुमाराणं देवाणं.......' है तो भगवती३४६ में भी असुरकुमार देवों की स्थिति कही है।
समवायांग के दशवें समवाय का सत्तरहवाँ सूत्र-'बायरवणस्सइकाइए......' है तो भगवती३४७ में भी प्रत्येक वनस्पति की उत्कृष्ट स्थिति दश हजार वर्ष की कही है।
समवायांग के दशवें समवाय का अठारहवाँ सूत्र–'वाणमंतराणं देवाणं.......' है तो भगवती३४८ में भी व्यन्तरदेवों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की बतायी है।
समवायांग के दशवें समवाय का उन्नीसवाँ सूत्र-'सोहम्मीसाणेणु कप्पेसु.......' है तो भगवती३४९ में भी सौधर्म और ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति दशः पल्योपम की कही है।
समवायांग के दशवें समवाय का बीसवाँ सूत्र- 'बंभलोए कप्पे.......' है तो भगवती३५० में भी ब्रह्मलोक देवों की उत्कृष्ट स्थिति दश सागरोपम की बतायी है।
समवायांग सूत्र के दशवें समवाय का इकवीसवाँ सूत्र –'लंतए कप्पे देवाणं.....' है तो भगवती३५१ में भी लान्तक देवों की जघन्य स्थिति दश सागर की बतायी है।
समवायांग के दशवें समवाय का बावीसवाँ सूत्र- 'जे देवा घोसं सुघोसं.......' है तो भगवती३५२ में भी घोष, सुघोष आदि देवों की उत्कृष्ट स्थिति दश सागरोपम की कही है।
समवायांग के दशवें समवाय का तेवीसवाँ सूत्र-'ते णं देवा णं अद्धमासाणं.......' है तो भगवती३५३ में भी घोष यावत् ब्रह्मलोकावतंसक विमान के देव दश पक्ष से श्वासोच्छ्वास लेते कहे हैं।
समवायांग के दशवें समवाय का चौबीसवाँ सूत्र-'तेसिं णं देवाणं........' है तो भगवती३५४ में भी घोष, यावत् ब्रह्मलोकावतंसक के देवों की आहार लेने की इच्छा दश हजार वर्ष में कही है।
समवायांग के ग्यारहवें समवाय का आठवाँ सूत्र-'इमीसे णं रयणप्पहाए.........' है तो भगवती३५५ में भी रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति ग्यारह पल्योपम की कही है। ३४५. भगवती-श. १ उ. १ ३४६. भगवती-श. १ उ. १ ३४७. भगवती-श. १ उ.१ ३४८. भगवती-श. १ उ. १ ३४९. भगवती-श. १ उ. १ ३५०. भगवती-श. १ उ. १
भगवती-श. १ उ.१ ३५२.
भगवती-श. १ उ. १
भगवती-श. १ उ. १ ३५४. भगवती-श. १ उ. १ ३५५. भगवती-श. १ उ. १
३५३.
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