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समवायांग के नवम समवाय का पन्द्रहवाँ सूत्र-"सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु......" है तो भगवती३३४ में भी सौधर्म व ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति नौ पल्योपम की कही है।
समवायांग के नवम समवाय का सोलहवाँ सूत्र -"बंभलोए कप्पे........." है तो भगवती३३५ में भी ब्रह्मलोक कल्प के कुछ देवों की स्थिति नौ सागरोपम की कही है।
समवायांग के नवम समवाय का सत्तरहवाँ सूत्र-"जे देवा पम्हं सुपम्हं......." है तो भगवती३३६ में भी पक्ष्म, सुपक्ष्म, पक्ष्मावर्त आदि देवों की उत्कृष्ट स्थिति नौ सागरोपम की बताई है।
समवायांग के नवम समवाय का अठारहवाँ सूत्र-'ते णं देवा नवण्हं..........' है तो भगवती३३७ में भी पक्ष्म, आदि देव नौ पक्ष में श्वासोच्छवास लेते हैं ऐसा कथन है।
समवायांग के नवम समवाय का उन्नीसवाँ सूत्र –'तेसि णं देवाणं.......' है तो भगवती३३८ में भी पक्ष्म, सुपक्ष्म आदि देवों को आहार लेने की इच्छा नौ हजार वर्ष से होती कही है।
___समवायांग के दशम समवाय का नौवां सूत्र – 'इमीसे णं रयणप्पहाए..........' है तो भगवती३३९ में भी रत्नप्रभा नैरयिकों की जघन्य स्थिति दश हजार वर्ष की कही गई है।
समवायांग के दशम समवाय का दशम सूत्र-'इमीसे णं रयणप्पहाए.........' है तो भगवती३४० में भी रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति दश पल्योपम की कही है।
समवायांग के दशम समवाय का ग्यारहवाँ सूत्र –'चउत्थीए पुढवीए.......' है तो भगवती३४१ में भी पंकप्रभा पृथ्वी में दस लाख नारकवास कहे हैं, ऐसा वर्णन है।
समवायांग के दशवें समवाय का बारहवाँ सूत्र –'चउत्थीए पुढवीए.......' है तो भगवती३४२ में भी पंकप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की उत्कृष्ट स्थिति दश सागरोपम की बतायी है।
समवायांग के दशवें समवाय का तेरहवाँ सूत्र– 'पंचमीए पुढवीए......' है तो भगवती३४३ में भी धूमप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की जघन्य स्थिति दश सागरोपम की कही है।
समवायांग के दशवें समवाय का चौदहवाँ सूत्र- 'असुरकुमाराणं देवाणं.......' है तो भगवती३४४ में भी असुरकुमार देवों की जघन्य स्थिति दश हजार वर्ष की प्ररूपित है। ३३४. भगवती-श. १ उ. १ ३३५. भगवती-श. १ उ. १ ३३६. भगवती-श. १ उ. १ ३३७. भगवती-श. १ उ. १ ३३८.
भगवती-श. १ उ. १
भगवती-श. १ उ.१ ३४०. भगवती-श. १ उ. १ ३४१. भगवती-श. १ उ. १
भगवती-श. १ उ. १ ३४३. भगवती-श. १ उ. १ ३४४. भगवती-श. १ उ. १
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३४२.
भगवता-श. १