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समवायांग के ग्यारहवें समवाय का नवम सूत्र - 'पंचमीए पुढवीए .....' है तो भगवती३५६ में भी धूमप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति ग्यारह सागरोपम की बतायी है ।
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समवायांग के ग्यारहवें समवाय का दशवां सूत्र – 'असुरकुमाराणं देवाणं.. असुरकुमार देवों की स्थिति ग्यारह पल्योपम की बतायी है।
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समवायांग के ग्यारहवें समवाय का ग्यारहवाँ सूत्र - 'सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु.. सौधर्म ईशानकल्प के कुछ देवों की स्थिति ग्यारह पल्योपम की प्ररूपित है। समवायांग के ग्यारहवें समवाय का बारहवाँ सूत्र - 'लंतए कप्पे .. कल्प के कुछ देवों की स्थिति ग्यारह सागरोपम की कही है।
समवायांग के ग्यारहवें समवाय का तेरहवां सूत्र - 'जे देवा बंभं सुबंभं ... सुब्रह्म आदि देवों की उत्कृष्ट स्थिति ग्यारह सागरोपम की बतायी है।
समवायांग के ग्यारहवें समवाय का चौदहवाँ सूत्र - 'ते णं देवा. ब्रह्मोत्तरावतंसक देव ग्यारह पक्ष से श्वासोच्छ्वास लेते कहे हैं।
असुरकुमार देवों की स्थिति बारह पल्योपम की बतायी है।
समवायांग के ग्यारहवें समवाय का पन्द्रहवाँ सूत्र – 'तेसिं देवाणं. ब्रह्मोत्तरावतंसक देवों की आहार लेने की इच्छा ग्यारह हजार वर्ष से होती बतलाई है। समवायांग के बारहवें समवाय का बारहवाँ सूत्र - इमीसे णं रयणप्पहाए.. रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति बारह सागरोपम की कही है।
समवायांग के बारहवें समवाय का चौदहवां सूत्र - 'असुरकुमाराणं देवाणं.
३५६.
३५७.
३५८.
३५९.
३६०.
३६१.
३६२.
३६३.
३६४.
. ३६५.
३६६.
भगवती - श. १ उ. १
भगवती - श. १ उ. १
.' है तो भगवती ३५७ में भी कुछ
भगवती - श. १ उ. १
भगवती - श. १ उ. १
भगवती - श. १ उ. १
समवायांग के बारहवें समवाय का तेरहवाँ सूत्र – पंचमीए पुढवीए .......' है तो भगवती ३३४ में भी धूमप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति बारह सागरोपम की बतायी है।
भगवती - श. १ उ. १
भगवती - श. १ उ. १
भगवती - श. १ उ. १
भगवती - श. १ उ. १
भगवती - श. १ उ. १
भगवती - श. १ उ. १
है तो भगवती ३५८ में भी
.' है तो भगवती ३५९ में भी लांतक
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.' हैं तो भगवती ३६० में भी ब्रह्म,
.' है तो भगवती ३६१ में भी ब्रह्म यावत्
समवायांग के बारहवें समवाय का पन्द्रहवाँ सूत्र - 'सोहम्मीसाणेसु कप्पे सु.... 'है तो भगवती ३६६ में भी सौधर्म ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति बारह पल्योपम की बतायी है ।
.' है तो भगवती ३६२ में भी ब्रह्म
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है तो भगवती ३६३ में भी
.' है तो भगवती ३६५ में भी कुछ