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समवायांग के चौथे समवाय का चौदहवाँ सूत्र - 'सणंतकुमार - माहिंदेसु..
भी सनत्कुमार और माहेन्द्र कुमार के कुछ देवों की स्थिति चार पल्योपम की कही है। समवायांग के चतुर्थ समवाय का पन्द्रहवाँ सूत्र - 'जे देवा किट्ठि सुकिट्ठि. में भी कृष्टि, सुकृष्टि, आदि वैमानिक देवों की उत्कृष्ट स्थिति चार सागरोपम की कही है।
समवायांग के पाँचवें समवाय का छठा सूत्र - 'पंच निज्जरट्ठाणा पण्णत्ता' है तो – भगवती २९२ में भी निर्जरा के प्राणातिपातविरति आदि पाँच स्थान बताये हैं।
समवायांग के पाँचवें समवाय का चौदहवाँ सूत्र - 'इमीसे णं रयणप्पहाए.. रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति पाँच• पल्योपम की कही है।
समवायांग के पांचवें समवाय का आठवाँ सूत्र - 'पंच अत्थिकाया पण्णत्ता ......' है तो भगवती २९३ में भी धर्मास्तिकाय आदि पाँच अस्तिकाय बताये हैं।
समवायांग के पाँचवें समवाय का पन्द्रहवाँ सूत्र – 'तच्चाए णं पुढवीए..... बालुकाप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरकियों की स्थिति पाँच पल्योपम की कही है।
समवायांग के पाँचवें समवाय का अठारहवाँ सूत्र – 'सणंकुमार - माहिंदेसु... सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के कुछ देवों की स्थिति पाँच सागरोपम की कही है।
' है तो भगवती २९० में
समवायांग के पाँचवें समवाय का सोलहवाँ सूत्र - 'असुरकुमाराणं देवाणं......' है तो भगवती २९६ में भी असुरकुमार देवों की स्थिति पाँच पल्योपम की कही है।
..' है तो भगवती २९१
समवायांग के पाँचवें समवाय का सत्तरहवाँ सूत्र - 'सौहम्मीसाणेसु....... है तो भगवती २९७ में भी सौधर्म ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति पाँच पल्योपम की बतायी है ।
२९०.
२९१.
२९२.
२९३.
२९४.
२९५.
२९६.
२९७.
२९८.
२९९.
३००.
भगवती - श. १ उ. १
भगवती - श. १ उ. १
भगवती - श. ७ उ. १०
भगवती - श. २ उ. १०
भगवती - श. १ उ. १
भगवती - श. १ उ. १
भगवती -श. १ उ. १
भगवती - श. १ उ. १
भगवती - श. १ उ. १
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' है तो भगवती २९४ में भी
समवायांग के पाँचवें समवाय का उन्नीसवाँ सूत्र - 'जे देवा वायं सुवायं......' है तो भगवती २९९ में भी वातसुवात आदि वैमानिक देवों की उत्कृष्ट स्थिति पाँच सागर की कही है।
भगवती - श. १ उ. १
भगवती – श. १ उ. १
' है तो भगवती २९५ में भी
समवायांग के छठे समवाय का तृतीय सूत्र है – 'छव्विहे बाहिरे तवोकम्मे पण्णत्ते......' तो भगवती ३०० में भी बाह्यतप के अनशन आदि छः भेद बताये हैं।
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है तो भगवती २९८ में भी