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समवायांग सूत्र के तृतीय समवाय का सत्तरहवाँ सूत्र है-'असंखिज्जवासाउय....' तो भगवती२८० में भी असंख्य वर्ष की आयु वाले संज्ञी तिर्यञ्च पंचेन्द्रियों की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की बतायी है।
समवायांग सूत्र के तृतीय समवाय का अठारहवां सूत्र-'असंखिज्जवासाउय.......' है तो भगवती२८१ में भी असख्य वर्ष की आयु वाले गर्भज मनुष्यों की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की बतायी है।
समवायांग के तृतीय समवाय का उन्नीसवां सूत्र है-'सोहम्मीसाणेसु.........' तो भगवती२८२ में भी सौधर्म, और ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति यही कही है।
समवायांग के तृतीय समवाय का बीसवाँ सूत्र-'सणंकुमार-माहिंदेसु.......' है तो भगवती२८३ में भी सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के कुछ देवों की स्थिति तीन सागरोपम की कही है।
समवायांग के तृतीय समवाय का इकवीसवाँ सूत्र है-'जे देवा आभंकरं पभकरं' है तो भगवती२८४ में आभंकर प्रभंकर देवों की उत्कृष्ट स्थिति तीन सागरोपम की बतायी है।
समवायांग के तृतीय समवाय का चौबीसवाँ सूत्र-'संतेगइया भवसिद्धिया.......' है तो भगवती२८५ में भी कुछ जीव तीन भव कर मुक्त होंगे, ऐसा वर्णन है।
समवायांग के चतुर्थ समवाय का दशवां सूत्र -"इमीसे णं रयणप्पहाए......" है तो भगवती२८६ में भी रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति चार पल्योपम की बतायी है।
समवायांग के चतुर्थ समवाय का ग्यारहवाँ सूत्र – 'तच्चाए णं पुढवीए........' है तो भगवती२८७ में भी बालुका पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति चार सागरोपम की कही है।
समवायांग के चतुर्थ समवाय का बारहवाँ सूत्र- 'असुरकुमाराणं देवाणं.......' है तो भगवती२८८ में भी असुरकुमार देवों की चार पल्योपम की स्थिति प्रतिपादित है।
समवायांग सूत्र के चतुर्थ समवाय का तेरहवाँ सूत्र-'सोहम्मीसाणेसु.........' है तो भगवती२८९ में भी सौधर्म ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति चार पल्योपम की कही है। २८०. भगवती-श. १ उ. १ २८१. भगवती-श. १ उ. १ २८२. भगवती-श. १ उ. १ २८३. भगवती-श. १ उ. १ २८४. भगवती-श. १ उ. १ २८५. भगवती-श. ६, १२ उ. १०, २ २८६. भगवती-श. १ उ. १ २८७. भगवती-श. १ उ. १ २८८. भगवती-श. १ उ. १ २८९. भगवती-श. १ उ. १
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