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समवायांग के चौथे समवाय का चौदहवाँ सूत्र-'छविहे अभितरे तवोकम्मे पण्णत्ते........' है तो भगवती३०१ में भी छः आभ्यन्तर तप का वर्णन है।
समवायांग के छठे समवाय का पाँचवाँ सूत्र-'छ छाउमत्थिया समुरघाया........' है तो भगवती३०२ में भी छानस्थिकों के छः समुद्घात बताए हैं।
समवायांग के छठे समवाय का दसवाँ सूत्र-'तच्चाए णं पुढवीए........' है तो भगवती ३०३ में भी बालुकाप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति छः सागरोपम की बतायी है।
समवायांग के छठे समवाय का ग्यारहवाँ सूत्र– 'असुरकुमाराणं.......' है तो भगवती३०४ में भी कुछ असुरकुमार देवों की स्थिति छः पल्योपम की प्रतिपादित है।
समवायांग के छठे समवाय का बारहवाँ सूत्र-'सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु........' है तो भगवती३०५ में भी सौधर्म व ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति छः पल्योपम की बतायी है।
समवायांग सूत्र के छठे समवाय का तेरहवाँ सूत्र-"सणंकुमारमाहिंदेसु........" है तो भगवती२०६ में भी सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के कुछ देवों की स्थिति छः पल्योपम की बतायी है।
समवायांग के छठे समवाय का चौदहवाँ सूत्र- 'जे देवा सयंभूरमणं........' है तो भगवती३०७ में भी स्वयंभू रमण विमान में उत्पन्न होने वालों की उत्कृष्ट स्थिति छ: सागर की कही है।
समवायांग के छठे समवाय का पन्द्रहवाँ सूत्र -"तेणं देवा, छण्हं अद्धमासाणं ........" है तो भगवती३०८ में भी स्वयंभू आदि विमानों के देव छः पक्ष में श्वासोच्छ्वास लेते हैं, ऐसा वर्णन है।
समवायांग के छठे समवाय का सोलहवाँ सूत्र-"तेसिं णं देवाणं........' है तो भगवती३०९ में भी स्वयंभू यावत् विमानवासी देवों की इच्छा आहार लेने की छः हजार वर्ष के बाद होती है।
समवायांग सूत्र के सातवें समवाय का तृतीय सूत्र-'समणे भगवं........' है तो भगवती३१० में भी श्रमण भगवान् महावीर सात हाथ के ऊँचे कहे गए हैं।
समवायांग के सातवें समवाय का बारहवाँ सूत्र-'इमीसे णं रयणप्पहाए णं.......' है तो भगवती३११ में भी रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति सात पल्योपम की प्रतिपादित है। ३०१. भगवती श. २५ उ. ७ ३०२. भगवती श. १३ उ. १० ३०३. भगवती श. १ उ. १ ३०४. भगवती श. १ उ. १ ३०५. भगवती श. १ उ. १ ३०६. भगवती श. १ उ. १ ३०७. भगवती श. १ उ. १ ३०८. भगवती श. १ उ. १ ३०९. भगवती श. १ उ. १ ३१०. भगवती श. १ उ. १ ३११. भगवती श. १ उ. १
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