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समवायांग के एकावनवें समवाय का प्रथम सूत्र है-"मुणिसुव्वयस्स णं अरहओ पण्णासं अज्जिया साहस्सीओ होत्था...................." है तो आचारांग२३८ में भी मुनिसुव्रत की आर्यिकाओं का वर्णन है।
समवायांग सूत्र के वियासीवें समवाय का द्वितीय सूत्र है "समणे भगवं महावीरे बासीए राइदिएहिं वीइक्कंतेहिं गब्भाओ गब्भं साहरिए२३९... .........." तो आचारांग२४० में भी भगवान् महावीर के गर्भ-परिवर्तन का उल्लेख
समवायांग के बानवेंवे समवाय का प्रथम सूत्र है-'बाणउई पडिमाओ पण्णत्ताओ.. तो आचारांग२४१ में भी बानवें प्रतिमाओं का उल्लेख हुआ है।
समवायांग के सूत्रों के साथ आचारांगगत विषयों का जो साम्य है, वह यहां पर निर्दिष्ट किया गया है।
समवायांग और सूत्रकृतांग
सूत्रकृतांग द्वितीय अंग है। आचारांग में मुख्य रूप से आचार की प्रधानता रही है तो सूत्रकृतांग में दर्शन की प्रधानता है। महावीर युगीन दर्शनों की स्पष्ट झांकी इसमें है। आचारांग की तरह यहभी भाव-भाषा और शैली की दृष्टि से अलग-थलग विलक्षणता लिए हुए है। संक्षेप में यहां प्रस्तुत है समवायांग के साथ सूत्रकृतांग की तुलना।
समवायांग के प्रथम समवाय का नवम सूत्र है-"एगे धम्मे" तो सूत्रकृतंग२४२ में भी इस धर्म का उल्लेख
समवायांग के प्रथम समवाय का दशवाँ सूत्र है-'एगे अधम्मे' तो सूत्रकृतांग२४३ में भी यही वर्णन है। समवायांग के प्रथम समवाय का ग्यारहवाँ सूत्र है- 'एगे पुण्णे' तो सूत्रकृतांग२४४ में भी पुण्य का वर्णन है। समवायांग के प्रथम समवाय का बारहवाँ सूत्र है- 'एगे पावे' तो सूत्रकृतांग२४५ में भी पाप का निरूपण हुआ
समवायांग के प्रथम समवाय का तेरहवाँ सूत्र है 'एगे बंधे' तो सूत्रकृतांग२४६ में भी बन्ध का वर्णन है। समवायांग के प्रथम समवाय का चौदहवाँ सूत्र है- 'एगे मोक्खे' तो सूत्रकृतांग२४७ में भी मोक्ष का उल्लेख
२३८. २३९.
२४०. २४१.
२४२.
२४३.
समवायांग के प्रथम समवाय का पन्द्रहवां सूत्र है- 'एगे आसवे' तो सूत्रकृतांग२४८ में भी आश्रव का निरूपण है। आचारांग-श्रु. १ आचारांग-श्रु. २ अ. २४ आचारांग-श्रु. २ अ. २४ आचारांग-श्रु. २ सूत्रकृतांग-श्रु. २ अ. ५ सूत्रकृतांग-श्रु. २ अ.५ सूत्रकृतांग-श्रु. २ अ. ५ सूत्रकृतांग-श्रु. २ अ. ५ सूत्रकृतांग-श्रु. २ अ. ५ सूत्रकृतांग-श्रु. २ अ. ५ सूत्रकृतांग-श्रु. २ अ. ५
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२४४. २४५.
२४६.
२४८.