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समवायांग के प्रथम समवाय का सोलहवां सूत्र
'एगे संवरे" है तो सूत्रकृतांग २४९ में भी संवर की प्ररूपणा
हुयी है।
समवायांग के प्रथम समवाय का सत्तरहवां सूत्र - 'एगा वेयणा' है तो सूत्रकृतांग २५० में भी वेदना का वर्णन
समवायांग के प्रथम समवाय का अठारहवां सूत्र है – 'एगा निज्जरा' तो सूत्रकृतांग २५१ में भी निर्जरा का वर्णन है। समवायांग के द्वितीय समवाय का प्रथम सूत्र - 'दो दण्डा पण्णत्ता .......' है तो सूत्रकृतांग २५२ में भी अर्थदण्ड और अनर्थदण्ड का वर्णन है।
.' है तो सूत्रकृतांग २५३ में
समवायांग के बावीसवें समवाय क प्रथम सूत्र है - 'बावीसं परीसहा पण्णत्ता' तो सूत्रकृतांग २५४ में भी परीषहों का वर्णन है।
है ।
समवायांग के तेरहवें समवाय का प्रथम सूत्र - 'तेरस किरियाठाणा पण्णत्ता.
भी क्रियाओं का वर्णन है ।
इस तरह समवायांग और सूत्रकृतांग में अनेक विषयों की समानता है ।
स्थानाङ्ग और समवायांग ये दोनों आगम एक शैली में निर्मित हैं। अतः दोनों में अत्यधिक विषयसाम्य है। इन दोनों की तुलना स्थानाङ्गसूत्र की प्रस्तावना में की जा चुकी है, अतएव यहाँ उसे नहीं दोहरा रहे हैं । जिज्ञासुजन उस प्रस्तावना का अवलोकन करें।
समवायांग और भगवती
समवायांग और भगवती इन दोनों आगमों में भी अनेक स्थलों पर विषय में सदृशता है। अतः यहां समवायांगगत विषयों का भगवती के साथ तुलनात्मक अध्ययन दे रहे हैं।
समवायांग के प्रथम समवाय का प्रथम सूत्र है – 'एगे आया' तो भगवती २५५ में भी चैतन्य गुण की दृष्टि से आत्मा एक स्वरूप प्रतिपादित किया है।
समवायांग के प्रथम समवाय का द्वितीय सूत्र है – 'एगे अणाया' तो भगवती २५६ सूत्र
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समवायांग के प्रथम समवाय का चतुर्थ सूत्र है 'एगे अदण्डे' तो भगवती २५७ में भी प्रशस्त योगों का प्रवृत्तिरूप व्यापार - अदण्ड को एक बताया है।
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की दृष्टि से अनात्मा का एक रूप प्रतिपादित
२४९.
२५०.
२५१.
२५२.
२५३.
२५४.
२५५.
२५६.
२५७.
सूत्रकृतांग - श्रु . २ अ. ५
सूत्रकृतांग- श्रु २ अ. ५
सूत्रकृतांग- श्रु. २ अ. ५
सूत्रकृतांग - श्रु २ अ. २
सूत्रकृतांग - श्रु . २ अ. २
२ अ २
सूत्रकृतांग - श्रु
भगवती - शतक १२ उद्देशक १०
भगवती - शतक १ उ. ४
भगवती - शतक ११ उ. ११
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में भी अनुपयोग लक्षण