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में गणधर अग्निभूति ७४ वर्ष की आयु पूर्ण कर सिद्ध हुये। ७५वें समवाय में भगवान् सुविधि के ७५सौ केवली थे। भगवान् शीतल ७५ हजार पूर्व और भगवान् शान्ति ७५ हजार वर्ष गृहवास में रहे । ७६वें समवाय में विद्युतकुमार आदि भवनपति देवों के ७६-७६ लाख भवन बताये गये हैं। सतहत्तरवें समवाय में सम्राट् भरत ७७ लाख पूर्व तक कुमारावस्था में रहे। ७७ राजाओं के साथ उन्होंने संयममार्ग ग्रहण किया। ७८वें समवाय में गणधर अकम्पित ७८ वर्ष की आयु में सिद्ध हुये। ७९वें समवाय में छठे नरक के मध्यभाग से छटे घनोदधि के नीचे चरमान्त तक ७९ हजार योजन अन्तर है। ८०वें समवाय में त्रिपृष्ठ वासुदेव ८० लाख वर्ष तक सम्राट् पद पर रहे।
८१वें समवाय में कुंभ के ८१सौ मन:पर्यवज्ञानी थे। ८२वें समवाय में ८२ रात्रियाँ व्यतीत होने पर श्रमण भगवान् महावीर का जीव गर्भान्तर में संहरण किया गया। ८३वें समवाय में भगवान् शीतल के ८३ गण और ८३ गणधर थे। ८४वें समवाय में भगवान् ऋषभदेव की ८४ लाख पूर्व की और भगवान् श्रेयांस की ८४ लाख वर्ष की आयु थी। भगवान् ऋषभ के ८४ गण, ८४ गणधर और ८४ हजार श्रमण थे। ८५वें समवाय में आचारांग के ८५ उद्देशनकाल बताये हैं। ८६वें समवाय में भगवान् सुविधि के ८६ गण और ८६ गणधर बताये हैं। भगवान सुपार्श्व के ८६सौ वादी थे। ८७वें समवाय में ज्ञानावरणीय और अन्तराय कर्म को छोड़ कर शेष ६ कर्मों की ८७ उत्तरप्रकृतियाँ बतायी हैं। ८८वें समवाय में प्रत्येक सूर्य और चन्द्र के ८८-८८ महाग्रह बताये हैं। ८९वें समवाय में तृतीय आरे के ८९ पक्ष अवशेष रहने पर भगवान् ऋषभदेव के मोक्ष पधारने का उल्लेख है और भगवान् शान्तिनाथ के ८९ हजार श्रमणियाँ थीं। ९०वें समवाय में भगवान् अजित और शान्ति इन दोनों तीर्थंकरों के ९० गण और गणधर थे।
९१वें समवाय में भगवान् कुन्थु के ९१ हजार अवधिज्ञानी श्रमण थे। ९२वें समवाय में गणधर इन्द्रभूति ९२ वर्ष की आयु पूर्ण कर मुक्त हुये। ९३वें समवाय में भगवान् चन्द्रप्रभ के ९३ गण और ९३ गणधर थे। भगवान् शान्तिनाथ के ९३सौ चतुर्दश पूर्वधर थे।९४वें समवाय में भगवान् अजित के ९४सौ अवधिज्ञानी श्रमण थे। ९५वें समवाय में भगवान् श्री पार्श्व के ९५ गण और ९५ गणधर थे। भगवान् कुन्थु की ९५ हजार वर्ष की आयु थी। ९६वें समवाय में प्रत्येक चक्रवर्ती के ९६ करोड़ गाँव होते हैं। ९७वें समवाय में आठ कर्मों की ९७ उत्तर-प्रकृतियाँ हैं । ९८वें समवाय में रेवती व ज्येष्ठा पर्यन्त के १९ नक्षत्रों के ९८ तारे हैं। ९९वें समवाय में मेरु पर्वत भूमि से ९९ हजार योजन ऊंचा है। १००वें समवाय में भगवान् पार्श्व की और गणधर सुधर्मा की आयु सौ वर्ष की थी, यह निरूपण है।
____ उपर्युक्त पैंतीसवें समवाय से १००वें समवाय तक विपुल सामग्री का संकलन हुआ है। उसमें से कितनी ही सामग्री पौराणिक विषयों से सम्बन्धित है। भूगोल और खगोल, स्वर्ग और नरक आदि विषयों पर अनेक दृष्टियों से विचार हुआ है। आधुनिक विज्ञान की पहुँच जैन भौगोलिक विराट् क्षेत्रों तक अभी तक नहीं हो पायी है। ज्ञात से अज्ञात अधिक है। अन्वेषणा करने पर अनेक अज्ञात गम्भीर रहस्यों का परिज्ञान हो सकता है। इन समवायों में अनेक रहस्य आधुनिक अन्वेषकों के लिये उद्घाटित हुये हैं। उन रहस्यों को आधुनिक परिपेक्ष्य में खोजना अन्वेषकों का कार्य है।
ऐतिहासिक दृष्टि से इसमें चौबीस तीर्थंकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, गणधर, तीर्थंकरों के श्रमण, श्रमणी, श्रावक, श्राविका आदि के सम्बन्ध में भी विपुल सामग्री है। तीर्थंकर जैन शासन के निर्माता हैं। आध्यात्मिक-जगत् के आचारसंहिता के पुरस्कर्ता हैं। उनका जीवन साधकों के लिये सतत मार्गदर्शक रहा है। तीर्थंकरों के विराट जीवनचरितों का मूल बीज प्रस्तुत समवायांग में है। ये ही बीज अन्य चरित ग्रन्थों में विराट रूप ले सके हैं। तीर्थंकरों के प्राग् ऐतिहासिक और ऐतिहासिक विषयों पर विपुल सामग्री है और अन्य विज्ञों के अभिमतों के आलोक में भी उस पर चिन्तन किया जा सकता है। पर प्रस्तावना की पृष्ठमर्यादा को ध्यान में रखते हुये मैं जिज्ञासु पाठकों को इतना सूचन अवश्य करूंगा कि वे मेरे द्वारा लिखित, "भगवान् ऋषभदेवः एक परिशीलन"."भगवान पार्श्व: एक समीक्षात्मक
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