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इक्कीस प्रकृतियों का सत्त्व कहा है। अवसर्पिणी के पांचवें, छठे, आरे तथा उत्सर्पिणी के प्रथम और द्वितीय आरे इक्कीस-इक्कीस हजार वर्ष के हैं और नारकों व देवों की इक्कीस पल्योपम व सागरोपम की स्थिति बतायी है। यहाँ पर शबल का अर्थ है-कर्बुरित, मलीन या धब्बों से विकृत जो कार्य चारित्र को मलीन बनाते हों, वे शबल हैं। दशाश्रुतस्कन्ध में भी इन दोषों का निरूपण है। इस प्रकार इकीसवें समवाय में दोषों से बचने का संकेत है और कुछ ऐतिहासिक सामग्री भी है।
बाईसवें समवाय में बाईस परीषह, दृष्टिवाद के बाईस सूत्र, पुदगल के बाईस प्रकार तथा नारकों व देवों की बाईस पल्योपम व बाईस सागरोपम स्थिति का वर्णन है।
प्रस्तुत समवाय में परीषह के बाईस प्रकार बताये हैं। भगवती सूत्र१७९ और उत्तराध्ययन सूत्र१८० में परीषह का विस्तार से निरूपण है। परीषह एक कसौटी है। बीज को अंकुरित होने में जल के साथ चिलचिलाती धूप की भी आवश्यकता होती है। इसी तरह साधना में निखार लाने के लिये परीषह की उष्णता भी आवश्यक है। परीषह आने पर साधक घबराता नहीं है। पर वह सोचता है कि अपने आप को परखने का मुझे सुनहरा अवसर मिला है। उत्तराध्ययननियुक्ति८१ के अनुसार परीषह अध्ययन, कर्मप्रवाद पूर्व के सत्तरहवें प्राभृत से उद्धृत हैं। तत्त्वार्थसूत्र १८२ में भी परीषहों का निरूपण किया गया है।
तेईसवां और चौबीसवां समवाय : एक विश्लेषण
तेईसवें समवाय में निरूपित है-तेईस सूत्रकृतांग के अध्ययन, जम्बूद्वीप के तेईस तीर्थंकरो को सूर्योदय के समय केवलज्ञान समुत्पन्न होना, भगवान् ऋषभदेव को छोड़कर तेईस तीर्थंकर पूर्वभव में ग्यारह अंग के ज्ञाता थे। ऋषभ का जीव चतुर्दश पूर्व का ज्ञाता था। तेईस तीर्थंकर पूर्वभव में माण्डलिक राजा थे। ऋषभ चक्रवर्ती थे। नारकों व देवों की तेईस पल्योपम सागरोपम की स्थिति बताई गई है। यहाँ पर सूत्रकृतांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के सोलह और द्वितीय श्रुतस्कन्ध के सात अध्ययन मिलाकर कुल तेईस अध्ययनों का निरूपण किया है। प्रस्तुत समवाय में तेईस तीर्थंकरों को सूर्योदय के समय केवलज्ञान उत्पन्न होने की बात कही है। आवश्यकनियुक्ति१८३ में प्रथम तेईस तीर्थंकरों को पूर्वाह्न में और महावीर को पश्चिमाह्न में केवलज्ञान हुआ। दिगम्बर ग्रन्थों में किस समय किस को केवलज्ञान हुआ, इस सम्बन्ध में मतभेद है। आवश्यकनियुक्ति के अनुसार भगवान् ऋषभदेव के जीव को बारह अंगों का ज्ञान था,१८४ यह स्पष्ट संकेत है। दिगम्बर परम्परा का अभिमत है कि ऋषभ के जीव को ग्यारह अंग और चौदह पूर्व का ज्ञान था। इस तरह तेइसवें समवाय में सामग्री का चयन हुआ है।
चौबीसवें समवाय में निरूपित है-चौबीस तीर्थंकर, क्षुल्लक हिमवन्त और शिखरीपर्वत की जीवाएँ, चौबीस अहमिन्द्र, चौबीस अंगुल वाली उत्तरायणगत सूर्य की पौरुषी छाया, गङ्गा सिन्धु महानदियों के उद्गम स्थल पर चौबीस कोस का विस्तार, नारकों व देवों की चौबीस पल्योपम व सागरोपम की स्थिति। १७९. भगवती सूत्र-शतक ८०, उद्दे. ८, पृ. १६१ १८०. उत्तराध्ययन सूत्र, अ. २ १८१.
क-उत्तराध्ययन नियुक्ति गाथा ६९
ख-उत्तराध्ययन चूर्णि पृ. ७ १८२. तत्त्वार्थसूत्र अ. ८ सू ९ से १७ १८३. आवश्यकनियुक्ति गाथा २७५ १८४. आवश्यकनियुक्ति गाथा २५८
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