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ॐ समतायोग का मार्ग : मोक्ष की मंजिल ३७
सर्वक्रियाएँ उपयोगयुक्त हों : मोक्ष की मंजिल प्राप्त करने का तीसरा उपाय समतायोग के माध्यम से मोक्ष की मंजिल प्राप्त करने हेतु तीसरा उपाय हैउपयोगयुक्त सर्वक्रियाएँ करना। तात्पर्य है - अन्यमनस्क होकर कार्य करना द्रव्यक्रिया हैं और तन्मय होकर कार्य करना - -उपयोगयुक्तक्रिया । भावक्रिया भी इसे कहा जा सकता है। जिस प्रवृत्ति या क्रिया के साथ चेतना का अद्वैत होता है अथवा चेतना और क्रिया दोनों एक ही दिशा में चलें, वहाँ भावक्रिया है और शून्य मन से क्रिया करना, जिसमें चेतना और क्रिया भिन्न-भिन्न दिशा में जा रही हो, वहाँ द्रव्यक्रिया है। भावक्रिया ही प्राणवान् क्रिया है । द्रव्यक्रिया निष्प्राण है। खाने पीने, पहनने, सोने, जागने आदि प्रत्येक क्रिया या प्रवृत्ति के साथ चेतना को जोड़ देने पर वह क्रिया या प्रवृत्ति भावक्रिया है। ऐसी यतनापूर्वक क्रिया कर रहा है, वहाँ प्रतिक्षण भावक्रिया है; क्योंकि व्यक्ति जागरूक होता है, तभी उपयोगपूर्वक काम करता है। भावक्रिया के तीन आयाम हैं - ( १ ) सतत जागरूक रहना, (२) वर्तमान में जीना, और (३) जानते हुए कर्म करना । सतत जागरूकता में रहने वाला व्यक्ति कार्यसिद्धि में सफलता चाहे तो उसे इन तीन सूत्रों के प्रकाश में चलने से मिल सकती है, वह सर्वकर्ममुक्तिरूप मोक्ष की मंजिल ।
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भावक्रिया और द्रव्यक्रिया के स्वरूप और परिणाम में अन्तर
अतः उपयोगसहित क्रिया भावक्रिया है, जिसमें चेतना और क्रिया दोनों का योग होता है। तन कोई भी प्रवृत्ति करे, वाणी कुछ भी बोले, आँख कुछ भी देखें, कान कुछ भी सुनें; ध्यान, चेतना में केन्द्रित रहे, तो अवग्रह के साथ ईहा, अवाय और धारणा भी जुड़ जाती है, यही भावक्रिया की सिद्धि है । जिस प्रवृत्ति में शरीर, इन्द्रियों, मन आदि का योग चेतना के साथ नहीं होता, वहाँ केवल अवग्रह सम्भव है, ईहा, अवाय और धारणा तथा स्मृति की सम्भावना नहीं होती। ऐसी स्थिति में द्रव्यक्रिया होगी, भावक्रिया नहीं । इसी प्रकार तप, जप, ध्यान, धारणा, त्याग, प्रत्याख्यान, सामायिक, प्रतिक्रमण आदि जो भी धर्मक्रिया की जाए, उसके साथ चेतना, उपयोग, यत्नाचार या विवेक को जोड़ा जाए तो वह क्रिया भावक्रिया होगी । इसलिए तप, जप आदि को भावक्रिया से युक्त करने के लिए उस प्रवृत्ति या क्रिया क़ा शब्दबोध, अर्थबोध और उसमें चेतना का उपयोग, ये तीनों बातें आवश्यक हैं। ऐसी शुद्ध आध्यात्मिक भावक्रिया से संवर और निर्जरा तो है ही, उत्कृष्ट भावरसायण आएं तो सर्वकर्ममुक्तिरूप मोक्ष भी प्राप्त हो सकता है।
धर्म- शुक्लध्यान की स्थिरता से सर्वकर्ममुक्ति
सर्वकर्ममुक्तिरूप मंजिल पाने के लिए धर्म- शुक्लध्यान की स्थिरता चौथा उपाय है। सम्यग्दृष्टि की भूमिका में समतायोग के सन्दर्भ में धर्मध्यान का जो विकास
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