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ॐ ३८६ * कर्मविज्ञान : भाग ८ ॐ
कितना स्मरण रखता है ? देह-त्याग की कसौटी की वेला में देहात्म-बुद्धि कितनी ... कम है ? इसी को ज्ञानी पुरुष समाधिमरण की प्रवल कंसौटी कहते हैं। आराधना-विराधना की प्रबल कसौटी भी मृत्यु है
सचमुच, आराधना और विराधना की या समाधिमरण की सफलताअसफलता की कसौटी मृत्यु ही है। मृत्यु के पैमाने से आराधक और विराधक को नापा जाता है। मृत्यु के समय ही वास्तव में पता लगता है कि अमुक साधक आराधक है या विराधक ? यों तो कहने को सभी लोग अपने-अपने मृत् : पारिवारिक जनों या साम्प्रदायिक पुरुषों को आराधक कह देते हैं। परन्तु किसी की आराधकता या विराधकता की सच्ची कसौटी तो मृत्युकाल में ही होती है? कई साधक जीवन के पूर्वार्द्ध में जीवनकला में सिद्धहस्त एवं सफल दिखाई देते हैं, किन्तु जीवन के उत्तरार्द्ध में मृत्यु के निकट आने पर वे उस परीक्षा में असफल हो जाते हैं। जबकि कई साधक जीवन के पूर्वार्द्ध में जीवनकला में बिलकुल पिछड़े, अनभ्यस्त, पामर और अज्ञ-से दिखाई देते हैं, किन्तु जीवन के उत्तरार्द्ध में वे ही लोग सँभल जाते हैं। अपने पिछले अशुभ जीवन को आलोचना, गर्दा, पश्चात्ताप (आत्म-निन्दना) और प्रायश्चित्त द्वारा तथा कषाय और शरीर को समभाव से कृश करके संलेखना की आग में झोंककर सौ टंच सोने-सा शुद्ध बना लेते हैं और अन्तिम समय में प्रसन्नतापूर्वक समाधिमरण (संथारे) सहित मृत्यु का सहर्ष आलिंगन करते हैं। वे मृत्यु को पराजित कर देते हैं, मृत्यु उन्हें पराजित नहीं कर पाती। इस प्रकार वे अपनी अन्तिम परीक्षा में सफल आराधक हो जाते हैं। वैसे मृत्यु किसी सम्प्रदाय, जाति, धर्म, कौम, प्रान्त या राष्ट्र के गण्य-मान्य व्यक्ति की परवाह नहीं करती। वह हर एक के पास आती है और परीक्षा करके चली जाती है। उस परीक्षा में जो सफल होता है, खरा उतरता हैं, उसे आराधक कहा जाता है और जो असफल होता है, खरा नहीं उतरता, उसे विराधक। जीवन की सन्ध्या के समय टिमटिमाते हुए जीवन दीपक के बुझने की बेला में जो साधक अपनी बाजी जीत जाता है, मृत्यु उस पर आराधक की और जो हार जाता है, उस पर विराधक की छाप लगाकर चली जाती है। ___ जीवितकाल की अन्यान्य कसौटियों की अपेक्षा मृत्युकाल की कसौटी बलवती होती है। जीवितकाल की कसौटी तो आती है और चली जाती है, जबकि मृत्युकाल की कसौटी तो अन्तिम होती है, वह आकर सदा के लिए चली जाती है। वह व्यक्ति के दुर्भाग्य या सौभाग्य का, आराधक या विराधक का अथवा सफलता या असफलता का फैसला करके ही जाती है। समाधिमरण के साधक एवं आराधक के लिए तो जीवितकाल की कसौटियाँ भी जागृति-प्रेरक एवं बोधदायक हैं, वह इनसे बोध प्राप्त करके प्रतिक्षण जाग्रत रहकर अन्तिम समय में भी एकमात्र आत्मा के
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