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ॐ संलेखना-संथारा : मोक्ष यात्रा में प्रबल सहायक ॐ ४२९ ॐ
से उन्मूलन करने वाले समाधिमरण को धारण किया है, उसने धर्मरूपी महाविधि को पर-भव में जाने के लिए साथ ले लिया है। इस जीव ने अनन्त बार मरण प्राप्त किया, किन्तु समाधि सहित पुण्यमरण नहीं हुआ। यदि समाधि सहित पुण्यमरण हुआ होता तो यह आत्मा संसाररूपी पिंजड़े में कदापि बंद होकर नहीं रहती।"
आचार्य समन्तभद्र के अनुसार-"जीवन में आचरित तपों का फल अन्त समय में गृहीत संलेखना-संथाराव्रत है।" 'अन्तकृद्दशांग' में जिन ९० साधक-साधिकाओं का वर्णन है, वे सभी अपने अन्तिम समय में संलेखना-संथारापूर्वक यावज्जीव अनशन करके उसी भव में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुए हैं। अन्य साधकों में भी जिन-जिनने संलेखना-संथारा किया है, या तो उन्होंने सीधे ही उसी भव में मुक्ति प्राप्त की है, अथवा मुक्ति-प्राप्ति .में सहायक समाधिमरण प्राप्त उच्च देवलोक में गये हैं, अगले भव में या तीन-चार अथवा सात-आठ भवों में वे अवश्य ही मुक्ति प्राप्त करेंगे। इस प्रकार संलेखना-संथारा मोक्ष-यात्रा में प्रबल सहायक है, इसमें कोई संदेह नहीं।'
१. (क) “जैन आचार : सिद्धान्त और स्वरूप' से भाव ग्रहण, पृ. ७१६, ७११
(ख) स्थानांग, स्था. ३, उ. ४ (ग) महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, गा. १३१, १३० (घ) रत्नकरण्डक श्रावकाचार, श्लो. १३०, १२३ (ङ) भगवती आराधना ६५०, ६७६ (च) सागार धर्मामृत ७, ५८, ८, ३७-३८
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