________________
__
संलेखना-संथारा : मोक्ष यात्रा में प्रबल सहायक 8 ४२१ *
शरीर (तैजस-कार्मण शरीर) के साथ आगे (आगामी गति, योनि या भव तक) चला जाता है। हमारे में (अवीतरागावस्था के दौरान) रहने वाले (राग, द्वेष, क्रोधादि कषाय, मोह, ममत्व आदि वैभाविक) वैकारिक भावों (परिणामों या अध्यवसायों) से ही हमारा कर्मशरीर (सूक्ष्मशरीर) बनता है। अहंकार-ममकार (मैं और मेरे पन) का भाव ही कर्मशरीर का कारण है।
अन्तिम समय में मानव जिन-जिन पर-भावों के प्रति राग-द्वेष-मोह-कषायादि विभावात्मक भावों की स्मृतियों को लेकर स्थूल (औदारिक) शरीर को छोड़ता है; उन्हीं से बना हुआ उसका सम्बन्ध रह जाता है यानी कर्मशरीर के साथ वैसा ही सम्बन्ध जुड़ जाता है। स्थूल शरीर के नष्ट होने के साथ ही उन पूर्वोक्त स्मृतियों के अनुसार निर्मित कार्मण शरीर के अनुरूप दूसरा शरीर (दूसरी गति, योनि, भव और शरीरादि) मिल जाता है। लेकिन उस शरीर में भी पूर्व सम्बन्ध की स्मृति बनी रहती है। यही कारण है कि कई लोगों की पूर्व-जन्म की ग्मृति हो आती है, क्योंकि पूर्व-जन्म के संस्कार भी साथ में आते हैं।
अन्तिम सम्बन्ध-विषयक स्मृति आगामी जन्म एवं शरीर की कारण ___ यह एक नियम है कि अन्तिम समय में मनुष्य को प्रायः उसी की स्मृति रहती है, जिसके साथ उसका सम्बन्ध रहता है। शरीर, परिवारादि एवं सम्पत्ति आदि के साथ सम्बन्ध रखने से सम्बन्ध-विच्छेद न करने से इन्हीं की स्मृति बनी रहती है। अतः सांसारिक सम्बन्ध के विच्छेद न करने से मनुष्य बार-बार जन्म-मरणादिरूप संसार-चक्र में चक्कर लगाता रहता है और सांसारिक सम्बन्ध का अन्तिम समय में (संलेखना-संथारा द्वारा विच्छेद करके शुद्ध आत्मा तथा परमात्मा के भावों के स्मरण में रहने से जन्म-मरणादिरूप संसार-सम्बन्ध-कर्मशरीरादि का अन्त हो जाता है।
पूर्वोक्त सांसारिक सम्बन्धियों से,
सम्बन्ध-विच्छेद करने में मुख्य हिदायतें . . ' अतः पूर्वोक्त तीनों मुख्य सांसारिक सम्बन्धियों से सम्बन्ध विच्छेद की साधना (संलेखना-संथारा द्वारा) करनी आवश्यक है। सम्बन्ध-विच्छेद करने के लिए निम्नोक्त बातों पर ध्यान देना आवश्यक है
(१) परिवर्तन अपेक्षित नहीं-सम्बन्ध-विच्छेद करने के लिए किसी भी प्रकार के परिवर्तन की किंचित् भी आवश्यकता नहीं है। न ही स्थान बदलने की जरूरत है और न वस्त्र बदलने की। न परिवार (या संघादि) को छोड़ने की आवश्यकता है
और न किसी निर्जन स्थान पर जाने की। व्यक्ति जहाँ भी जायेगा, उसका एक सम्बन्धी-शरीर' तो उसके साथ ही रहेगा। हाँ, यदि स्थानादि के परिवर्तन से मोह-ममत्व-आसक्तियुक्त सम्बन्ध को तोड़ने-काया का उत्सर्ग करने में, विक्षेप का
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org