________________
ॐ २१८ ॐ कर्मविज्ञान : भाग ८8
एकान्त अक्रियावादी मुख्यतः तीन और उनकी प्ररूपणा
एकान्त अक्रियावादी मुख्यतः तीन होते हैं लोकायतिक, वौद्ध और सांख्य। अक्रियावादी लोकायतिक के मत में आत्मा ही नहीं है, तो उसकी क्रिया कैसे होगी? और उस क्रिया से उत्पन्न कर्मबन्ध भी कैसे होगा? कर्मवन्ध भी कहाँ से होगा? फिर भी लोक-व्यवहार में जैसे मुट्टी का बंद करना और खोलना उपचारमात्र से माना जाता है, वैसे ही लोकायतिक मत में उपचारमात्र से आत्मा में बद्ध और मुक्त का व्यवहार माना जाता है।
दूसरे अक्रियावादी बौद्ध हैं। ये सभी पदार्थों को क्षणिक (क्षणविध्वंसी) मानते हैं और क्षणिक पदार्थों में क्रिया का होना सम्भव नहीं। बौद्धदर्शन का मन्तव्य यह है कि जब सभी पदार्थ क्षणभर में नष्ट हो जाते हैं, तव अवययी और अवयव को कोई पता नहीं लगता, न ही भूत और भविष्य के साथ वर्तमान क्षण का कोई सम्बन्ध होता है। सम्बन्ध न होने से क्रिया नहीं होती। क्रिया न होने से क्रियाजनित कर्मबन्ध नहीं होता। इस प्रकार बौद्ध अक्रियावादी हैं। तात्पर्य यह है कि बौद्ध कर्मबन्ध की आशंका से आत्मा आदि पदार्थों का तथा उनकी क्रिया का सर्वथा निषेध करते हैं।
तीसरे अक्रियावादी सांख्य हैं, जो आत्मा को कूटस्थ नित्य तथा सर्वव्यापक मानने के कारण अक्रिय मानते हैं। इस कारण वे भी वास्तव में अक्रियावादी हैं। तीनों क्रिया करते हैं, फिर भी अक्रियावादी कैसे ?
लोकायतिक पदार्थ का निषेध करते हुए ये पदार्थ के अस्तित्व का प्रतिपादन कर बैठते हैं, पदार्थों का अस्तित्व बतलाने वाले शास्त्रों का, उन शास्त्रों के उपदेशक आत्माओं का, उपदेश के साधनरूप शास्त्र का, जिसे उपदेश दिया जाता है, उस शिष्य का उन्हें अवश्य स्वीकार करना पड़ता है, परन्तु सर्वशून्यता वादयुक्त अक्रियावाद में ये तीनों (क्रियाएँ या पदार्थों का अस्तित्व) नहीं आते। अतः लोकायतिक पदार्थ नहीं है, यह भी कहते हैं। दूसरी ओर प्रकारान्तर से पदार्थों का अस्तित्व भी स्वीकारते हैं, अतः वे परस्पर विरुद्ध मिश्रपक्ष का आश्रय लेते हैं। वे आत्मा को ही नहीं मानते, तब बन्ध और उससे मोक्ष को मानने का सवाल ही कहाँ रहा? अतः लोकायतिक का अक्रियावाद मोक्ष का कारण (मार्ग) कथमपि सिद्ध नहीं होता।
१. (क) सूत्रकृतांगसूत्र, श्रु. १, अ. १२, गा. ४-१०. विवेचन (आ. प्र. सा., ब्यावर),
पृ. ४०५-४०७ (ख) वही, शीलांक वृत्ति, पत्रांक २०८ (ग) सूत्रकृतांग नियुक्ति, गा. ११९
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org