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ॐ २४२. ॐ कर्मविज्ञान : भाग ८ ॐ
क्या बुलाऊँ, क्या सन्देश भेजूं या मँगाऊँ ? सच्चिदानन्द प्रभु मेरे अन्तर में विराज रहे हैं, उन्हें ढूँढ़ने या उनका दर्शन करने कहीं दूर नहीं जाना पड़ता।' फादर हैरास (Haras) ने ठीक ही कहा है-“God lives within the heart." -ईश्वर हृदय में निवास करता है। आचार्य अमितगति ने सामायिक पाठ में यही अन्तरिच्छा छह पद्यों में प्रकट की है-“वह देवाधिदेव परमात्मा मेरे हृदय में निवास करें।" संत कबीर ने भी कहा-“मोको कहाँ तू ढूँढे, बंदे ! मैं तो तेरे पास में।" गोस्वामी तुलसीदास जी की श्री राम के प्रति अनन्य-भक्ति ने तथा सूरदास जी की श्री कृष्ण के प्रति अप्रतिम भक्ति ने दोनों को साहित्य जगत् में तथा लोकजीवन में . प्रतिष्ठित कर दिया। जैन-परम्परा में श्री आनन्दघन जी ऐसे ही भक्तयोगी हुए हैं, जिनकी वाणी में गूंजती जिनेन्द्र-भक्ति की गूंज आज भी आत्मार्थी साधकों को भावविभोर कर देती है। उन्होंने तृतीय तीर्थंकर सम्भवनाथ की स्तुति में भगवद् भक्ति या परमात्म-सेवा की प्रथम भूमिका के रूप में अभय, अद्वेष और अखेद को भक्ति के जीवन में अनिवार्य माने हैं। भक्ति का महत्त्वपूर्ण अंग : उपासना : अर्थ, स्वरूप और परिणाम ___भक्ति का एक महत्त्वपूर्ण अंग है-उपासना। जैनागमों में यत्र-तत्र पर्युपासना शब्द का उल्लेख आता है। उपासना का शब्दशः अर्थ होता है-समीप बैठना, सत्संगति करना, समीपता। समर्थ वीतराग परमात्मा के समीप मन-वचन-काया से स्थिर होकर बैठना पर्युपासना है। वीतराग परमात्मा की सर्वतोमुखी उपासना अर्थात् समीपता से अलभ्य लाभ प्राप्त होता है। समीपता यानी सर्वतोमुखी सामीप्य का लाभ सर्वविदित है। चन्दन के समीप उगे हुए झाड़-झंखाड़ भी सुगन्धित हो जाते हैं। कोयले और गन्धी की दुकान पर बैठने वाले क्रमशः कालिमा और सुगन्धि का कुछ न कुछ अंश लेकर ही जाते हैं। शरीर ठण्ड से काँप रहा हो, उस समय अग्नि या धूप की समीपता से आवश्यक गर्मी प्राप्त की जाती है। दुष्टों या दुर्जनों की संगति (समीपता) से दुर्गति या दुःस्थिति और सज्जनों या साधुजनों के सान्निध्य से सद्गुणों की वृद्धि अथवा आध्यात्मिक प्रगति होना स्वाभाविक है। 'योगदर्शन' में कहा गया है-“अहिंसा-प्रतिष्ठायां तत्-सन्निधौ वैरत्यागः।"-जिस महापुरुष के जीवन में अहिंसा-समता-वीतरागता प्रतिष्ठित हो चुकी है, उसके पास बैठने वाले पशु-पक्षी या मानव जन्मजात या कुलस्वभावगत वैरभाव को छोड़ देते हैं। सत्संग-कुसंग का प्रभाव सर्वविदित है। वीतराग परमात्मा की समीपता प्राप्त करने
१. 'कबीर की साखी' से भाव ग्रहण २. देखें-सामायिक पाठ में छह पद्यों के अन्त में कहा गया हैस देवदेवो हृदये ममाऽऽस्ताम्।
___-सामायिक पाठ, श्लो. १२-१७ ३. सेवन-कारण पहली भूमिका रे, अभय, अद्वेष, अखेद। -आनन्दघन चौबीसी संभव जिनस्तवन
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