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शीघ्र मोक्ष प्राप्ति के पुरुषार्थ की सफलता
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चार प्रकार के पुरुषार्थ : रहस्यार्थ
भारतीय संस्कृति में चार प्रकार के पुरुषार्थ बताए गए हैं - ( १ ) धर्म, (२) अर्थ, (३) काम, और (४) मोक्ष। इन चारों में से अर्थ और कामपुरुषार्थ को धर्मपुरुषार्थ के नियंत्रण में रखकर करने का निर्देश भी उन विज्ञों ने किया है। अर्थपुरुषार्थ का मतलब केवल धन में पुरुषार्थ नहीं है, अर्थपुरुषार्थ का रहस्यार्थ हैजीवन के लिए आवश्यक पदार्थों को प्राप्त करने का पुरुषार्थ । इसी प्रकार कामपुरुषार्थ का रहस्यार्थ है–आवश्यकतानुसार इन्द्रिय और मन के विषयों में प्रवृत्त होने का पुरुषार्थ। परन्तु इन दोनों पुरुषार्थों को क्रियान्वित करते समय विवेक, यतना, लक्ष्य का ध्यान तथा संवर - निर्जरारूप धर्म, मुमुक्षुत्व एवं आत्मार्थित्व होना प्रत्येक साधक के लिए अनिवार्य है । यही कारण है कि अर्थ और कामपुरुषार्थ पर धर्मपुरुषार्थ का अंकुश रखना अनिवार्य बताते हुए वेदव्यास जी ने कहा
“धर्मादर्थश्च कामश्च, स धर्मः किं न सेव्यते ? "
-धर्म से अर्थात् धर्म के परिप्रेक्ष्य में, संवर- निर्जरारूप धर्म की मर्यादा में अर्थ और कामपुरुषार्थ का सेवन करना हितकर है, अतः उस शुद्ध धर्म का - आत्म-धर्म का सेवन क्यों नहीं करते ?'
तात्पर्य यह है कि साधुवर्ग को साधुधर्म की मर्यादा में रहते हुए और गृहस्थ-श्रावकवर्ग को गृहस्थ- श्रावकधर्म की मर्यादा में अर्थ और काम का सेवन करना हितकर है। एकान्त अर्थ और कामपुरुषार्थ तो सर्वथा हेय ही है।
साधु-श्रावकवर्ग के लिए अर्थ और काम पुरुषार्थ
कोई कह सकता है कि साधुवर्ग के लिए अर्थ और कामपुरुषार्थ की क्या आवश्यकता है? उत्तर में निवेदन है कि साधुवर्ग को भी अपने जीवन-निर्वाह के लिए, शरीर-यात्रा के लिए तथा संयम - यात्रा के लिए आहार -पानी, वस्त्र, पात्र, रजोहरण, धर्मशास्त्र, पुस्तक आदि पदार्थों को लाने, उनकी यतना और विवेकपूर्वक उपभोग
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१. धर्मश्चार्थश्च कामश्च मोक्षश्चेति महर्षिभिः ।
पुरुषार्थोऽयमुपदिष्टः चतुर्भेदः पुरातनैः ॥
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-ज्ञानसार ३/४
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