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ॐ शीघ्र मोक्ष-प्राप्ति के पुरुषार्थ की सफ नता
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ईश्वर या अवतार के हाथ में मोक्ष नहीं, मोक्ष स्व-पुरुषार्थ के हाथ में है कई ईश्वकर्तृत्ववादी अथवा ईश्वरभक्त यह कहते हैं कि मोक्ष के लिए पुरुषार्थ करने की क्या आवश्यकता है? मोक्ष तो ईश्वर के या भगवान के हाथ में है, वे जव जिसका चाहेंगे, तव उसको मोक्ष दे देंगे। हमारे द्वारा पुरुषार्थ करने से कुछ नहीं होगा। ऐसे अन्ध-विश्वास में ग्रस्त होकर कई लोग हाथ पर हाथ धरकर भगवान भरोसे बैठ जाते हैं अथवा कई अंध-विश्वासी और घोर मिथ्यात्वग्रस्त जीव हिंसा, असत्य, चोरी, डकैती, हत्या, लूटपाट, व्यभिचार आदि कुकर्म निःशंक होकर करते रहते हैं। उनके मन में कभी यह विचार ही नहीं होता कि इन कुकृत्यों का कितना दण्ड भोगना होगा। क्या ईश्वर या कोई अवतार, पैगंबर या शक्तिमान् ऐसे पापी जीव को माफ कर सकता है अथवा सामान्य नैतिक जीवनजीवी हो, तो भी उसे मोक्ष के विषय में स्वयं आध्यात्मिक विकास के लिए पुरुषार्थ किये बिना कोई मोक्ष प्रदान कर सकता है ? मोक्ष तो दूर रहा, ऐसे पापी लोगों को देवगति या मनुष्यगति भी प्राप्त होनी कठिन है। धर्मलक्षी नीतिमय जीवन जीने वालों को कदाचित् पुण्य प्रबल हो तो देवगति मिल सकती है। अगर बिना सम्यक् पुरुषार्थ किये ही मोक्ष प्राप्त हो सकता हो, तो सम्यग्यदर्शनादि की या सम्यक्तप आदि की साधना-आराधना करने की क्या आवश्यकता है?
भाग्य भरोसे न रहकर मोक्ष के लिए शुद्ध पुरुषार्थ करना जरूरी कई भाग्यवादी लोग यह कहते हैं कि भाग्य में मोक्ष पाना लिखा होगा तो मोक्ष मिल जाएगा अन्यथा लाख कोशिश करो, मोक्ष नहीं मिलने का। ऐसा कहने वाले लोग भूल जाते हैं कि भाग्य भी पुरुषार्थ से लिखता है। जैसा शुभ-अशुभ पुरुषार्थ होगा, तदनुसार ही उसके फलस्वरूप सुभाग्य या दुर्भाग्य बनता है। इसलिए मोक्ष के लिए शुभ या शुद्ध पुरुषार्थ करना आवश्यक है, भाग्य भरोसे बैठे रहना नहीं।
सर्वज्ञप्रभु के ज्ञान के भरोसे न बैठकर मोक्षानुकूल पुरुषार्थ करना चाहिए कई लोग यह शंका भी प्रगट करते हैं कि अनन्त ज्ञानी वीतराग देवों ने ज्ञान में जो कुछ देखा-जाना है, वही होगा, उसके अतिरिक्त तो कुछ होगा नहीं, फिर मोक्ष के लिए इतने कष्ट सहकर, मन मारकर पुरुषार्थ करने की क्या आवश्यकता है? इसका समाधान यह है कि यह सही है कि वीतराग सर्वज्ञप्रभु अपने ज्ञान में सभी जीवों के भावों को यथावत् जानते हैं, परन्तु उनका ज्ञान किसी जीव की क्रियाओं पर प्रतिबन्धक नहीं होता, सभी जीव अपनी इच्छानुसार प्रवृत्ति करते हैं, उनकी प्रवृत्ति को सर्वज्ञप्रभु का ज्ञान रोक नहीं सकता। दूसरी बात-सर्वज्ञप्रभु ने हमारे विषय में क्या-क्या जाना-देखा है ? यह बात अल्पज्ञ (छद्मस्थ) तो जान नहीं सकता। कदाचित् अवधिज्ञानादि विशिष्ट ज्ञान से कोई जान भी ले, तो भी उसे मोक्षविषयक
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