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ॐ शीघ्र मोक्ष-प्राप्ति के विशिष्ट सूत्र
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उत्कृष्ट भावरसायन से युक्त सिद्ध-वुद्ध-मुक्त हो जाते हैं। जैसे-क्रौंच पक्षी की रक्षा के लिए परम कारुणिक मैतार्य मुनि ने अपने जीवन को होम दिया। समभाव से शरीर के प्रति ममत्व त्याग के कारण वे सर्वकर्ममुक्त सिद्ध-बुद्ध हो गये। . शत्रदेव के कोप से नदी में लोगों द्वारा नाव से फेंके गये आचार्य अण्णका-पुत्र (देव द्वारा भाले की नोंक पर झेले जाने पर शरीर से निकलते हुए) अपने रक्त से मरते हुए अप्कायिक जीवों के प्रति अपार करुणाभाव तथा अपने आप के प्रति भी करुणाभाव व अपने देहभाव के प्रति गर्दा होने के कारण क्षपकश्रेणी पर आरोहण हुआ और वे अन्तकृद् केवली हुए। ।
इसी प्रकार जीवरक्षा के लिए अपार करुणाभाव तथा ऐसे सुअवसर के लिए अपनी आत्मा के प्रति दयाभाव और देहभाव के प्रति आत्म-निन्दा और गर्दा का भाव होने से जीव क्षपकश्रेणी पर आरूढ़ होकर केवलज्ञान प्राप्त करता है और तदनन्तर सिद्धि = मुक्ति भी निश्चित ही प्राप्त करता है।
यह है-समस्त जीवों की रक्षा के उत्कृष्ट भावरसायन से सर्वकर्ममुक्ति का उपाय !
आठवाँ बोल-सुपात्रदान तथा अभयदान देवे तो जीव वेगो-वेगो मोक्ष में जाय इस बोल में अभयदान और सुपात्रदान की पारस्परिक संगति का उल्लेख है। अप्रमत्त मुनिवर, जिन्होंने छहों जीवनिकायों को अपनी ओर से समस्त भयों से मुक्त कर दिया है ऐसे उत्कृष्ट अभयदाता मुनि ही उत्कृष्ट सुपात्र हैं। तथैव मुनि को दान देने वाले सभी सुपात्रदानी नहीं होते, जिन्हें मुनि के गुणों के प्रति उल्लासभाव जाग्रत हो, जो ऐसे सुपात्र को दान देने का अवसर पाकर अहोभाग्य मानता है। ऐसे सुपात्रदान की विशेषता के चार कारण 'तत्त्वार्थसूत्र' एवं 'सुखविपाकसूत्र' आदि में बताये हैं-(१) विधि, (२) द्रव्य, (३) दाता, और (४) पात्र; चारों शुद्ध होने से सुपात्रदान विशिष्ट फल वाला होता है। भगवतीसूत्र' में एक प्रश्न किया गया है-'भगवन् ! तथारूप (उत्तम) श्रमण और माहन को प्रासुक (अचित्त) और एषणीय (भिक्षा) में लगने वाले दोषों से रहित अशन, पान, खादिम और स्वादिम (चतुर्विध) आहार द्वारा प्रतिलाभित करते (विधिपूर्वक देते-बहराते) हुए श्रमणोपासक को क्या लाभ होता है ? उत्तर में भगवान ने कहा-“गौतम ! तथारूप श्रमण या माहन को यावत् प्रतिलाभित करता हुआ श्रमणोपासक तथारूप श्रमण या माहन को. समाधि उत्पन्न करता है। उन्हें समाधि प्राप्त कराने वाला श्रमणोपासक उसी समाधि को स्वयं प्राप्त करता है।'' इसके पश्चात् अगला प्रश्न है-"भगवन् ! तथारूप श्रमण या माहन को यावत् प्रतिलाभित करता हुआ श्रमणोपासक क्या १. देखें-द्रव्यहिंसा और भावहिंसा के लिए 'अहिंसादर्शन' (नवसंस्करण) (उपाध्याय अमर मुनि) .
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