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ॐ ३७८ ॐ कर्मविज्ञान : भाग ८ ॐ
अनन्त पुण्योदयवश मनुष्य-भव मिला तो सौभाग्य से धर्म की सामग्री भी मिली। निर्ग्रन्थ गुरु भी मिले, जो राग-द्वेष की गाँठ खुलवाते हैं, धर्माचरण की प्रेरणा करते हैं। ऐसा संयोग मिलने पर भी हम लापरवाह रहते हैं। ऐसी मूर्खता में ही जिंदगी पूरी हो जायेगी, फिर तो इसी चौरासी के चक्कर में घूमेंगे न? । मृत्यु के समय समाधि रखने की प्रेरणा
समाधिमरण के आकांक्षी भव्य जीवों को संसार के, देह के और भोगों के यथातथ्य स्वरूप पर बार-बार विचार करके उसमें से वोध. लेकर अन्तर में वैराग्यभाव को दृढ़ करते रहना परमावश्यक है।
शरीर छूटने के सम्बन्ध में निर्भय रहना चाहिए। आत्मा अजर, अमर, शाश्वत है, ज्ञान-दर्शनमय है। देह का संयोग होते हुए भी वह देह से भिन्न है। उसे (शरीर को) साता-असातावेदनीय हो तो भी वह जरा भी दुःखमय नहीं है। आत्मा है, वही मेरा स्वरूप है। शरीर को लेकर वेदनीय है। समय आने पर वेदनीय का क्षय होता. है। वेदनीय का क्षय होने पर मृत्यु-महोत्सवरूप है। कर्मों का नाश होना ही मृत्यु-महोत्सव है। समाधिमरण से असंख्यात गुणी निर्जरा होने से कर्मों का क्षय होता है। अतः मृत्यु को महोत्सव मानकर चलो। शरीर का हर्ष-शोक करने योग्य नहीं है। ज्ञात-द्रष्टा रहकर इसे तटस्थ दृष्टि से देखते रहो। मृत्यु के समय समाधि कैसे रहे ?
अतः ज्ञानी पुरुष समाधिमरण-साधक को बार-बार कहते हैं-निर्भय रहो, (आत्मा की) मृत्यु है ही नहीं, ऐसा मानकर चलो। मृत्यु को कोई रोकने में समर्थ नहीं है। आयुष्य कर्म क्षय होते ही देर-सबेर शरीर की मृत्यु अवश्य होने वाली है। अतः चित्त में हर्ष-शोक न करो, न ही किसी प्रकार का संकल्प-विकल्प करो। मन में हर्ष-उल्लास लाओ। दुःख को जान लिया, बस इतना ही काफी, उस पर किसी प्रकार का शोक, चिन्ता या आर्तध्यान न करो; क्योंकि वह तो जाने वाला है। जैसे म्यान से तलवार अलग है, वैसे ही शरीर से आत्मा अलग है। व्याधि या पीड़ा, ये सब शरीर को लेकर होती हैं, वे सब जाने के लिये आई हैं। मुझे उसके लिए किसी प्रकार का भय नहीं रखना है। कर्मों के उदय से दुःख-सुख आते हैं, वे भोगे जाते हैं, पर वे मेरे (आत्मा के) नहीं हैं। मेरे हैं-ज्ञान, दर्शन और चारित्र। ___ संकल्प-विकल्प में सर्ववस्तएँ आती हैं, वे मेरी नहीं हैं। जितना दुःख दिखाई देता है, उसे आत्मा जानती है। आत्मा का सुख आत्मा में है। रोग आता है, वहाँ कर्मक्षय अधिक होता है, वशर्ते कि समभाव से भोगा जाए। समाधिपूर्वक मरण से पापमात्र के नाश होने का शुभ अवसर है। समता और धैर्य रखकर क्षत्रियवृत्ति में रहो। दुःख को जितना भी आना हो, आए, उन सब का नाश होगा और आत्मा की
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