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शीघ्र मोक्ष प्राप्ति के विशिष्ट सूत्र ३०१
अपने आप में जड़ हैं, किन्तु आत्मा जब मोहवश अपने आत्म-भाव या ज्ञानादि आत्म-गुण को छोड़ या भूलकर इनके अधीन वशीभूत हो जाता है, तब ये चंचल होकर उसे विषय - सुखों में लुब्ध कर देती हैं।
ऐसी स्थिति में उत्कट बाह्यतप करने वाला, धर्मक्रिया करने वाला और स्वाध्यायादि करने वाला साधक भी इन्द्रियों के वशीभूत होकर संयम से पतित, भ्रष्ट और विराधक हो जाता है । विषयाधीन इन्द्रियाँ तप से निर्जरा होने पर भी पुनः नये कर्मों का बन्ध कर लेती हैं। यदि विषयासक्ति तीव्र हो तो निर्जरित कर्मों से भी अधिक कर्मों का बन्ध हो सकता है और फिर विषयनिरत इन्द्रियाँ संसार - परिभ्रमण की कारण बन जाती हैं। अनियंत्रित इन्द्रियाँ विषयों की ओर दौड़ती हैं, तब साधक अपनी व्रतमर्यादा को भूल जाता है, कषायों और विषयासक्ति में रमण करने लगता है।
इन्द्रिय - विषय, प्रकार, विषयाधीनता के तीन स्तर
प्रत्येक इन्द्रिय के एक-एक विषय के दो-दो प्रकार हैं - मनोज्ञ और अमनोज्ञ । विषयों में उत्सुक जीव इन पर राग और द्वेष करता रहता है। विषयों के प्रति उत्सुक आत्मा ही विषयाधीन है। विषयाधीन व्यक्ति की विषयों की अविद्यमान में भी उनकी चाह, गाढ़ रुचि होना आसक्ति है । फिर विषयों में इन्द्रियों का बह जाना - प्रवृत्त हो जाना इन्द्रिय-प्रचार है, विषयों के प्रति राग-द्वेष का होना विकार है । इस प्रकार इन्द्रिय-अनिग्रह ( विषयाधीनता) के तीन स्तर हैं।
इन्द्रिय - निग्रह के चार प्रकार
इन्द्रिय - निग्रह या विषयाधीनता पर नियंत्रण के चार प्रकार हैं - ( १ ) मात्र आसक्ति का त्याग, (२) विषयों से सिर्फ दूर रहना, (३) विषयों में प्रवृत्त होती हुई इन्द्रियों को रोकना या विषयों का संकोच करना, (४) विषयों में प्रवृत्त होने पर होने वाली रागादि विकृति को उदित न होने देना - उदित विकृति का निरोध करना । इन चारों की संगति होने पर ही यथार्थ रूप से इन्द्रिय-निग्रह या इन्द्रियविषयाधीनता पर नियंत्रण हो सकता है।
विषयासक्ति निवारणार्थ : विषयों के प्रति निर्वेद और उसके लिए पाँच अनुप्रेक्षाएँ
पाप का केन्द्र-बिन्दु विषयासक्ति है, जो दुःख का घर है। जैसे आग जल से बुझती है, वैसे ही आसक्ति निर्वेद से समाप्त होती है । विषयों के प्रति निर्वेद अर्थात् विरक्ति, अरुचि उससे लेने वाले दुःखद परिणामों एवं दोषों के चिन्तन से होती है । विषयरुचि के उत्पन्न होने का मुख्य कारण है- कांक्षामोह का उदय; जिसके क्षय में
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