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* मोक्ष अवश्यम्भावी : किनको और कब ? ४ ३२९
भी मोक्षानुरूप करता है । 'भगवतीसूत्र' में बताया है कि एक या दो भवों में जो सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होने वाले स्त्री या पुरुष होते हैं, वह निम्नोक्त १४ स्वप्नों में से कोई एक स्वप्न देखकर जाग्रत होता है - ( 9 ) स्वप्न के अन्त में अश्वपंक्ति, गजपंक्ति या वृषभपंक्ति देखे, उस पर चढ़ता हुआ देखे, स्वयं को चढ़ा हुआ माने तो उसी भव
में
मुक्त होता है। (२-३) पूर्व से पश्चिम तक समुद्र को दोनों ओर से छूती हुई बड़ी रस्सी देखे, उसे समेटने और काटने का प्रयत्न करता हुआ समेटे या काटे, ऐसा अनुभव करता हुआ जाग्रत हो तो उसी भव में मुक्त होते हैं । ( ४ ) एक बड़े काले या सफेद सूत के पिण्ड को देखे, उसे सुलझाता हुआ देखे या सुलझा देता हो, सुलझा दिया माने तो उसी भव में मुक्त होते हैं । (५) स्वप्न के अन्त में एक बड़ी
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राशि, ताँबे की राशि, कथीर की राशि या शीशे की राशि, देखने का प्रयत्न करता हुआ देखे, उस पर चढ़ता हुआ चढ़े, स्वयं को उस पर चढ़ा हुआ माने तो उसी भव में मुक्त होता है । (६) स्वप्न के अन्त में चाँदी, सोने या हीरों का ढेर देखता हुआ देखे, उस पर चढ़ता हुआ चढ़े, स्वयं को उस पर चढ़ा हुआ माने, स्वप्न देखकर तत्काल जाग्रत हो तो दूसरे भव में सिद्ध-मुक्त होता है । (७) स्वप्नान्त में तृणराशि, पत्तों की राशि, छाल, भूस, तुष या गोबर की राशि या कचरे का ढेर देखता हुआ देखे, बिखेरता हुआ बिखेरे तथा स्वयं ने बिखेर दिया है, ऐसा माने, ऐसा स्वप्न देखकर तत्काल जाग्रत हो तो उसी भव में सिद्ध-मुक्त होता है। (८) स्वप्न के अन्त में सर-स्तम्भ, वीरण-स्तम्भ, वंशीमूल-स्तम्भ, वल्लीमूल-स्तम्भ को देखता हुआ देखे, उखाड़ता हुआ उखाड़ फेंके, स्वयं ने उखाड़ डाला है, ऐसा माने और तत्काल जाग्रत हो तो उसी भव में मुक्त होता है । ( ९ ) एक महान् क्षीरकुम्भ, दधिकुम्भ, घृतकुम्भ या मधुकुम्भ देखता हुआ देखे, उसे उठाता हुआ उठाए, ऐसा माने कि स्वयं ने उसे उठा लिया है, यह स्वप्न देखकर तत्काल जाग्रत हो तो वह व्यक्ति उसी भव में मुक्त होता है । (१०) स्वप्न के अन्त में एक महान् सुरारूप जल का कुम्भ, सौवीररूप जलकुम्भ, तेलकुम्भ या वसाकुम्भ देखता हुआ देखे, फोड़ता हुआ उसे फोड़ डाले, स्वयं ने उसे फोड़ दिया है, ऐसा माने और स्वप्न देखकर तत्काल जाग्रत हो तो दूसरे भव में मुक्त होता है । ( ११ ) एक महान् कुसुमित पद्मसरोवर को स्वप्न के अन्त में देखता हुआ देखें, उसमें अवगाहन करता हुआ अवगाहन करे तथा स्वयं मैंने अवगाहन किया है, ऐसा माने और स्वप्न देखकर तत्क्षण जाग्रत हो तो उसी भव में मोक्ष प्राप्त करता है । ( १२ ) स्वप्न के अन्त में तरंगों और कल्लोलों से व्याप्त एक महासागर देखता हुआ देखे, तैरता हुआ पार कर ले, मैंने इसे स्वयं पार किया है, ऐसा माने और तत्काल जाग्रत हो तो उसी भव में मुक्त होता है । (१३) कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में सर्वरत्नमय एक महाभवन देखता हुआ देखे, उसमें प्रविष्ट होता हुआ प्रवेश करे तथा मैं स्वयं प्रविष्ट हो गया हूँ, ऐसा माने एवं ऐसा स्वप्न देखकर तत्क्षण जाग
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