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3 मोक्ष के निकट पहुँचाने वाला उपकारी समाधिमरण 8 ३७५ ४
दिव्य शरीर देने-दिलाने वाला समाधिमरण ही है। अतः उसका सहर्ष स्वागत करना चाहिए।
(१९) जैसे महात्मा पुरुष अनेक दृष्टान्त देकर युक्तियों और तर्कों से शरीर का स्वरूप समझाते हैं और उस (शरीर) पर रही हुई ममता-मूर्छा कम कराते हैं; वैसे ही रोग भी प्रत्यक्ष उपदेश देता है कि यह शरीर तेरा नहीं है, फिर इस पर मोह क्यों?
(२०) मनुष्य अपने शरीर को प्राणों से भी प्रिय समझकर विविध रूप से उसका पोषण करता रहता है। सर्दी लगे, गर्मी लगे, तब हीटर, कूलर, पंखा आदि चालू करने में वायुकाय के जीवों तथा अन्य सूक्ष्म जीवों की और कभी-कभी चिड़िया, कबूतर जैसे पंचेन्द्रिय जीव की भी हिंसा हो जाती है। खाने-पीने की सामग्री के जुटाने और सेवन करने में कितना आरम्भ-समारम्भ (हिंसा) होता है। उन साधनों के प्राप्त करने में कभी झूठ और कभी चोरी का पाप भी लग जाता है। मैथुन-सेवन के लिए कितना खर्च करके विवाह-शादी की जाती है। शरीर के तथा परिवारादि के सुख के लिए परिग्रहं का साधन भी बढ़ाते ही गए हो; फिर भी इस शरीर ने दगा दिया। अनेक उपचारों के बावजूद भी रोग मिटा नहीं। अतः अब भी समय है, इस शरीर का मोह छोड़कर, आत्मा का पोषण कर। समाधिमरण ही इसकी परम औषध है।
(२१) अरे जीव ! यदि तू रोग से घबराता है, तो भी यह रोग एकदम नहीं जायेगा। यह समझ कि रोग तेरे ही किये हुए कर्मों का फल है। अतः उसे मिटाने के लिए आतुर (व्याकुल) होने की जरूरत नहीं है। जब तक (असातावेदनीय) कर्मों का उदय है तब तक उपचारों से भी रोग मिटेगा नहीं। अतः जिनेश्वर भक्ति जैसी परम वैधकीय दवा-कर्म क्षीण करने की दवा-सच्चे दिल से कर, जिससे (भवभ्रमण का) रोग मिटे और मृत्यु आए तो भी सद्गति प्राप्त हो।
(२२) यदि वेदनीय कर्म का अत्यधिक जोर हो तो कर्म की निर्जरा भी अधिक हो सकती है, बशर्ते कि समभाव रहे। सोना अधिक ताप सहता है, तभी विशुद्ध होता है। वेदना के समय समभाव रहे तो कठिन कर्मों का क्षय भी होगा और नये कर्म भी नहीं बँधेंगे, जिससे आत्मा विशुद्ध होता जायेगा।
(२३) गजसुकुमार मुनि ने अंगारों की वेदना सहन की; स्कन्दक मुनि की चमड़ी उधेड़ी गई, तार्य मुनि ने स्वर्णकार द्वारा दी गई असह्य वेदना समभावपूर्वक सहन की। इसलिए वे शीघ्र मोक्ष में गए। हमारी वेदना उतनी तो नहीं है न? मान लो, उपाश्रय में प्रवचन में आपने समभाव की बातें सुनीं। घर जाते समय देखा कि किसी ने आपकी चप्पल चुरा ली, अतः नंगे पैर घर की ओर चले। रास्ते में एक जगह जलती हुई बीड़ी पैर के नीचे दब गई। उस समय कैसे भाव
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