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• ३३० कर्मविज्ञान : भाग ८
जाए तो वह उसी भव में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो जाता है । (१४) कोई नर या नारी स्वप्न के अन्त में सर्वरत्नमय एक महान् विमान को देखता हुआ देखे, उस पर चढ़ता हुआ चढ़े तथा मैं इस पर चढ़ गया हूँ, ऐसा स्वयं अनुभव करे और स्वप्न देखकर वह तत्काल जाग्रत हो जाए तो उसी भव में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो जाता है।
स्पष्ट है कि उसी स्त्री या पुरुष को ऐसे स्वप्न दिखाई देते हैं जो मोक्ष का ही चिन्तन, मनन, रटन आचरण करता हो । मोक्ष की ही माला जपता है, मोक्ष के ही ध्यान में रत रहता है, 'सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु' का ही जिसका अन्तरनाद हों, मोक्ष के ही मन्दिर में स्वयं की मुक्तात्माओं के बीच में रात-दिन रहता हो, ' जिन-जिन कारणों से मोक्ष प्राप्त होता है, उन-उन कारणों और उपायों पर विचार करता हो। उन्हीं का अभ्यास करता हो, मोक्ष में जाने का ही स्वप्न देखता हो । '
दस कारणों से जीव आगामीभद्रता के कारण शुभ कर्म का उपार्जन करता है.
जैसे कि 'स्थानांगसूत्र' में बताया गया है कि दस कारणों से जीव आगामी भद्रता (अगले भव में देवत्व की प्राप्ति और तदनन्तर मनुष्य-भव पाकर मुक्ति-प्राप्ति) के योग्य शुभ कार्यों का उपार्जन करते हैं । यथा - ( १ ) निदान (तप आदि के फल से सांसारिक सुखों की कामना) न करने से, (२) दृष्टि सम्पन्नता (सम्यग्दर्शन निश्चय - व्यवहार दोनों दृष्टियों से सांगोपांग आराधना - साधना करने) से, (३) योगवाहिता ( मन-वचन-काय को समाधिस्थ रखने या श्रुत - विनय - आचारतप इन चारों द्वारा समाधि रखने) से, (४) क्षान्ति-क्षमणता (समर्थ होकर भी अपराधी को क्षमा करने एवं क्षमा धारण करने, क्षमा देने - माँगने) से, (५) जितेन्द्रियता ( पाँचों इन्द्रियों के विषयों को जीतने) से, (६) ऋजुता ( मन-वचन-काया की सरलता) से, (७) अपार्श्वस्थता ( चारित्र - पालन में शिथिलता न आने देने) से, (८) सुश्रामण्य ( श्रमणधर्म का यथाविधि पालन करने) से, (९) प्रवचन-वत्सलता (जिन आगम और शासन के प्रति गाढ़ अनुराग) से, और (१०) प्रवचन- उद्भावनता (जिनागम और शासन की प्रभावना करने) से । २ सचमुच इन दसों ही बातों को जीवन में रमा लेने, सदैव अप्रमत्ततापूर्वक, विवेकपूर्वक, आत्म-ध्यानपूर्वक अपना लेने वाले के मोक्ष निकट आ जाता है। वैसे भी 'चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्तोत्र' के अनुसार - " मुक्तिः क्रीड़ति हस्तयोः ।" - उसके दोनों हाथों मुक्ति क्रीड़ा करती - अठखेलियाँ करती रहती है ।
वह भावितात्मा बनकर धर्मध्यान से ऊपर उठकर शुक्लध्यान का अभ्यास करे, शुद्ध आत्मा, परमात्मा के ही अनन्त गुणों में रमण करता रहे तो क्षपक श्रेणी पर एक न एक दिन आरूढ़ होकर शीघ्र ही क्षीणमोही बनकर कैवल्य प्राप्त कर सकता है।
१. भगवतीसूत्र, श. १६, उ. ६, सू. २२-३५
२. स्थानांगसूत्र, अ. १०, सू. १३३, पृ. ७३१
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