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* २७८ कर्मविज्ञान : भाग ८
मोक्ष के अंगभूत सम्यग्ज्ञान से सम्बन्धित तीन बोलों का विश्लेषण पहला बोल-ग - गुरुमुख से सूत्र - सिद्धान्तों का वाचन - श्रवण करे तो जीव वेग-वेगो मोक्ष में जाय
मोक्ष-प्राप्ति के सम्यग्ज्ञान अपेक्षित हैं । सम्यग्ज्ञान के अभाव में मोक्ष के विषय में सम्यक् पुरुषार्थ नहीं हो सकता । ज्ञान के द्वारा मोक्ष के स्वरूप और उसकी विधि को समझा जा सकता है। श्रुत ( शास्त्रों) के सम्यक् वाचन श्रवण के बिना सर्वांगीण ज्ञान .. नहीं हो सकता। आत्मा क्या है, कैसी है, वह नित्य है या अनित्य ? वह चारों गतियों में किन-किन कारणों से भ्रमण करती है ? आत्मा कर्मों से मुक्त कैसे हो सकती है ? ये और इनके सदृश कई अतीन्द्रिय बातों का ज्ञान सर्वज्ञ आप्तपुरुषों द्वारा कथित आगमों द्वारा ही हो सकता है और आगमज्ञान के अधिकारी आचार्य, उपाध्याय, स्थविर या विशिष्ट शास्त्रज्ञ साधु हैं । अतः आगमों, शास्त्रों, सिद्धान्तों या ग्रन्थों का वाचना या श्रवण गुरुमुख से होने पर ही उनमें निहित रहस्यों को जाना जा सकता है। शास्त्रों में अतीतकाल के अनुभव या प्रयोगों के तथ्य, घटनाओं के सत्य, आचरित पथ्यापथ्य, स्खलनाओं से प्राप्त होने वाले दण्ड प्रायश्चित्त आदि तथा व्यवहारों का समग्र लेखा-जोखा रहता है। वर्तमानकाल की क्रियाओं तथा आगामी काल के निर्देशों का व्यवस्थित संग्रह शास्त्रों में ही मिल सकता है। इसलिए ज्ञानी संयमी गुरुदेवों की विधिवत् विनयपूर्वक चरणोपासना ही शास्त्रों का सम्यग्ज्ञान प्रदान कर सकती है। यद्यपि कतिपय मानव आगम-श्रमण-वाचन किये बिना ही भावविशुद्धि के कारण सिद्ध
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मुक्त हो जाते हैं; परन्तु ऐसे स्वयं - बुद्ध पूर्व-जन्म के ज्ञान के संस्कारयुक्त होते हैं। अधिकांश मुमुक्षु साधकों को शास्त्रज्ञ अनुभवी विशेषज्ञों से ही शास्त्र की गूढ़ गुत्थियों का ज्ञान तथा रहस्यज्ञान मिल सकता है, स्वच्छन्दतापूर्वक स्वयं शास्त्र पढ़ने से कई बार व्यक्ति शास्त्र की बातों के अर्थ का अनर्थ कर बैठते हैं। स्वयं की बुद्धि से सम्यग्ज्ञान पाने वाले व्यक्ति थोड़े ही होते हैं। इसी कारण गुरुमुख से शास्त्र-वाचना लेने या शास्त्र श्रवण करने का महत्त्व है। लौकिक व्यवहार में भी अपने-अपने विषय में अनुभवी विशेषज्ञों का महत्त्व रहता ही है। विशेषज्ञ अनुभवी गुरु के मुख से वाचन- श्रवण करने से मन्द संवेग तीव्र हो जाता है। भावों की विशुद्धि बढ़ जाती है । जैसे किसी मशीन को चलाने के विषय में अनभिज्ञ व्यक्ति उस मशीन को स्वयं चलाता है, तो खतरा या संकट पैदा होने की सम्भावना होती है, वैसे ही स्वच्छन्दता से सूत्र- सिद्धान्त के वाचन या अभ्यास से भ्रान्ति, विपरीत बुद्धि हो जाने की सम्भावना है। दूसरा बोल - स्वयं ज्ञान सीखने और दूसरों को सिखाने से, ज्ञान में तन्मयता से जीव वेगो - वेगो मोक्ष में जाय
ज्ञान आत्मा का निजी गुण है । 'आचारांगसूत्र' में कहा गया है- "जो आत्मा है; वह विज्ञाता है, जो विज्ञाता है, वह आत्मा है ।" " आत्मा को ज्ञान से अलग नहीं जै आया से विन्नाया, जे विन्नाया से आया।
१.
- आचारांग, श्रु. १, अ. ५, उ. ५
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