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ॐ १७८ 6 कर्मविज्ञान : भाग ८
भी लगेगा। यदि छल-प्रपंच करके आहादि पदार्थ प्राप्त करेगा तो सत्य महाव्रत दूपित होगा। यदि किसी से जवग्न छीनकर या विना दिये ही काई आहादि पदार्थ , ले लिया तो अचौर्य महाव्रत भंग हो जायेगा। म्वाद-लोलुपतावश या आयक्तिवश आहार-वस्त्र-पात्रादि अतिमात्रा में संग्रह कर लिया या जिह्वा लालुपतावश सम्म ग्वादिष्ट आहार अधिक सेवन कर लिया तो क्रमशः अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य - महाव्रत को क्षति पहुँचेगी। इसलिए अहिंयादि महाव्रताचरणम्प सम्यक्चारित्र के सन्दर्भ में एपणासमिति के शुद्ध पालन पर जोर दिया गया है। ताकि साधुवर्ग को सर्वकर्मक्षयरूप मोक्ष की प्राप्ति के लिए मोक्षमार्ग पर चलने में आयानी रहे. विघ्न न आए। मोक्षमार्ग के सन्दर्भ में भाषासमिति विवेक-निर्देश ___इसी सन्दर्भ में आगे छह गाथाओं द्वारा भापासमिति का विवेक बताया गया है। साधुवर्ग को अहिंसा और सत्य महाव्रत के पालन करके कर्मक्षय करने के बदले भाषा के अविवेक से कर्मबन्ध न हो और वह निर्विघ्नतापूर्वक मोक्षमार्ग पर आगे बढ़ता रहे, इसके लिए भाषासमिति का पालन करना अत्यावश्यक है।' चारित्रशुद्धि के लिए दस विवेकसूत्र
'सूत्रकृतांग' के प्रथम अध्ययन के चतुर्थ उद्देशक में निश्चय चारित्रपूर्वक व्यवहारचारित्र की शुद्धि के लिए तीन गाथाओं द्वारा मोक्षरूप साध्य की प्राप्ति का निर्देश दिया गया है। उसका सार इस प्रकार है-वास्तव में सर्वकर्मक्षयरूप मोक्ष की दृष्टि से ज्ञान, दर्शन, चारित्ररूप रत्नत्रय मिलकर मोक्ष का मार्ग है, जो कर्मवन्धनों से छुटकारे का एकमात्र साधन है। मोक्षरूप शुद्ध साध्य की प्राप्ति के लिए साधनों (रत्नत्रय) की शुद्धि पर ध्यान देना आवश्यक है। इसी दृष्टि से पिछली अनेक गाथाओं द्वारा ज्ञान और दर्शन की शुद्धि के हेतु सुचारु रूप से निर्देश दिया गया है। बाकी रही चारित्रशुद्धि। अतः पिछली दो अहिंसा धर्म निरूपक गाथाओं के अतिरिक्त, यहाँ तीन गाथाओं द्वारा भी चारित्रशुद्धि पर जोर दिया गया है। चारित्रशुद्धि से ही आत्मा शुद्ध होती है और आत्मा के शुद्ध स्वरूप में अवस्थान ही मोक्ष है। हिंसादि पाँच आनवों से अविरति, प्रमाद, कषाय और त्रिविध योग का दुरुपयोग, ये सब चारित्र दोष के तथा कर्मबन्ध के मुख्य कारण हैं। 'तत्त्वार्थसूत्र' में चारित्रशुद्धि द्वारा आत्म-शुद्धि (निर्जरा) के परिप्रेक्ष्य में गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परीपहजय और पंचविध चारित्र-पालन तथा तप की साधना बताई है। यहाँ भी चारित्रशुद्धि के परिप्रेक्ष्य में तीन गाथाओं द्वारा दस विवेकसूत्र बताए हैं। उसका निष्कर्ष इस प्रकार है१. देखें-सूत्रकृतांग, श्रु. १, अ. ११ में एषणासमिति मार्ग-विवेक से सम्बन्धित तीन गाथाएँ व
विवेचन (आ. प्र. स., व्यावर) से भाव ग्रहण, पृ. ३८९-३९०
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