________________
ॐ निश्चयदृष्टि से मोक्षमार्ग : क्या, क्यों और कैसे ? ॐ २०३ ॐ
मन, बुद्धि, चित्त, इन्द्रियाँ या वेश, वस्त्र, पात्रादि उपकरण, उपाश्रय आदि नहीं हूँ', क्योंकि ये सव भौतिक हैं, पुद्गलमय हैं, मैं औदारिक, तैजस् और कार्मण शरीर भी नहीं हूँ, कर्मपुद्गल भी मेरे से भिन्न हैं, पुण्य-पाप, आम्रव-बन्ध और अजीव पुद्गल भी मेरे नहीं हैं। मैं इन सब शरीर और शरीर से सम्बद्ध जड़ एवं चेतन पदार्थों से भिन्न हूँ। इन सबके विपरीत मैं चेतन हूँ, अभौतिक हूँ, पुद्गलों से सर्वथा भिन्न हूँ, यहाँ तक कि संसार की अन्य आत्माओं से भी भिन्न हूँ। मैं ज्ञानस्वरूप हूँ, पुद्गल ज्ञानम्वरूप नहीं है। आत्मा और पुद्गल में मूलतः और स्वरूपतः विभेद है। इस प्रकार का भेदविज्ञान ही सम्यग्दर्शन की नींव है, मूलाधार है।'
जैनदृष्टि से सम्यग्दर्शन का सामान्य अर्थ-सम्यक्श्रद्धा या विश्वास अतः सर्वप्रथम मोक्ष के बीजरूप सम्यग्दर्शन को इसी कसौटी पर कसते हैं। अध्यात्मशास्त्र में सम्यग्दर्शन को मोक्ष का और मुमुक्षु जीवन का प्राणभूत सिद्धान्त माना गया है। सम्यग्दर्शन का जैनदृष्टि से अर्थ किया गया है सम्यग्करूप से श्रद्धा, श्रद्धान या विश्वास करना, प्रतीति करना अथवा दृढ़ निश्चय करना या अपनी दृष्टि शुद्ध व स्पष्ट करना। सम्यग्दर्शन के लिए आप जनता में विश्वास या श्रद्धा अथवा भक्ति शब्द अधिक प्रचलित है। प्रश्न होता है-श्रद्धा या विश्वास किस पर किया जाये?
. किस तत्त्वभूत पदार्थ पर श्रद्धा से शुद्ध सम्यग्दर्शन सम्भव दार्शनिक क्षेत्र में कहा जाता है-तत्त्वभूत पदार्थों पर श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है। उक्त परिभाषा के अनुसार सबसे बड़ी बाधा यह है कि संसार में अनन्त पदार्थ हैं। किसे तत्त्वभूत पदार्थ माना जाये, किसे अतत्त्वभूत? किसे तत्त्वभूत मानकर उस पर श्रद्धा की जाये या विश्वास किया जाये? विभिन्न दर्शनों ने अपने-अपने दर्शन के आदि आचार्यों के द्वारा पृथक्-पृथक् तत्त्व बताये हैं। सांख्यदर्शन ने २५ तत्त्व बताये हैं। योगदर्शन ने इन २५ तत्त्वों के अतिरिक्त २६वाँ ईश्वरतत्त्व माना है। वैशेषिकों ने द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय ये ६ तत्त्व माने हैं। • "तर्कसंग्रह' में अभाव को लेकर ७ तत्त्व बताये गये हैं। नैयायिकों ने प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टान्त, सिद्धान्त, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति और निग्रह-स्थान, ये १६ तत्त्व माने हैं, इन १६ तत्त्वों का ज्ञान निःश्रेयस (मोक्ष) प्राप्ति में कारण बताया है। वेदान्त दर्शन' में शुद्धाद्वैतवादी जड़-चेतनमय ब्रह्म को ही एकमात्र तत्त्व मानते हैं। द्वैतवादी वेदान्ती ब्रह्म और माया, ये दो तत्त्व मानते हैं। 'मीमांसक' वेदविहित कर्म को ही एकमात्र तत्त्व मानते
१. 'अध्यात्म प्रवचन' से भाव ग्रहण, पृ. २१४ २. तत्त्वार्थ श्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्।
-तत्त्वार्थसूत्र १
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org