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ॐ २१४ 8 कर्मविज्ञान : भाग ८
प्रशंसा में रत रहते हैं। फलतः वे अज्ञानवादरूपी मिथ्यात्व के कारण मोक्षमार्ग पर चलना तो दूर रहा, संसार के बंधन में दृढ़ता से जकड़ते जाते हैं।' एकान्त विनयवाद से भी मोक्ष प्राप्त नहीं होता
अज्ञानवाद की तरह एकान्त विनयवाद भी मोक्ष का कारण (मार्ग या साधन) नहीं है। सूत्रकृतांगसूत्र' में एकान्त विनयवाद को सत्यासत्य विवेकरहित बताया है। वहाँ कहा गया है-जो सत्य है, उसे असत्य मानते हुए; जो असाधु है, उसे साधु मानते हुए वहुत-से विनयवादी पूछने पर या न पूछने पर, अपने भाव के अनुसार विनय से ही स्वर्ग-मोक्ष-प्राप्ति बताते हैं। वस्तु के यथार्थ स्वरूप का परिज्ञान न ' होने से व्यामूढ़मति वे विनयवादी कहते हैं-विनय से ही स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। वे गधे से लेकर गाय तक, चाण्डाल से लेकर ब्राह्मण तक तथा जलंचर, खेचर, उरपरिसर्प एवं भुजपरिसर्प आदि सभी प्राणियों को विनयपूर्वक नमस्कार करते हैं। ___ 'सूत्रकृतांग नियुक्ति' में (एकान्त) विनयवाद के ३२ भेद बताए हैं-(१) देवता, (२) राजा, (३) यति (साधु), (४) ज्ञाति, (५) वृद्ध, (६) अधम (तिर्यंच आदि), (७) माता, और (८) पिता; इन आठों का मन से, वचन से, काया से और दान से विनय करना चाहिए। इस प्रकार ८ x ४ = ३२ भेद विनयवाद के हुए। एकान्त विनयवादी : सत्यासत्य विवेक से रहित
एकान्त विनयवादी सत्य-असत्य विवेकरहित हैं। इसके मुख्य तीन कारण हैं(१) मोक्ष या संयम जो प्राणियों के लिये हितकर है-सत्य है, उसे विनयवादी असत्य बताते हैं; (२) सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्ररूप रत्नत्रय, जो मोक्ष का वास्तविक मार्ग है, उसे विनयवादी असत्य कहते हैं; तथा (३) केवल (उपचार) विनय से मोक्ष नहीं होता, तथापि विनयवादी केवल विनय से ही मोक्ष मानकर असत्य को सत्य मानते हैं। विनयवादियों में सत्-असत् विवेकशून्यता
विनयवादियों में सत्-असत् विवेक नहीं होता। वे अपनी सत्-असत् विवेकशालिनी बुद्धि का प्रयोग न करके विनय करने की धुन में अच्छे-बुरे, १. (क) सूत्रकृतांग, श्रु. १, अ. १, उ. २, गा. ६-२३ (आ. प्र. स., ब्यावर), पृ. ५२-५३
(ख) वही, शीलांक वृत्ति, पत्रांक ३५-३६ (ग) अण्णाणिया ता कुसला वि संता, असंथुया णो वितिगिंछ-तिण्णा। अकोविया आहु अकोवियाए, अणाणुवीथीति मुसं वदंति॥
.१, अ.१२, गा.२ (घ) इसी गाथा पर विवेचन (आ. प्र. स., ब्यावर), पृ. ४०२-४०४
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