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ॐ २१२ , कर्मविज्ञान : भाग ८.
पीड़ित है, बुरे कर्म करके वह दुर्गति और नीच योनि में जाता है। नरक में तो प्रायः अज्ञानी ही हैं। फिर वे कहाँ कुशलमंगल हैं, वे परम्पर लड़ते-झगड़ते क्यों , हैं ? क्यों इतना दुःख पाते हैं ? तिर्यंचयोनि के जीव भी तो अज्ञानी हैं, अज्ञानवश ही तो वे पराधीन हैं। परवशता और अज्ञानता के कारण ही तो उन्हें भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी आदि के दुःख उठाने पड़ते हैं। अज्ञान में इवे हैं, तभी तो वे किसी क्षेत्र में प्रगति नहीं कर पाते। अज्ञानी मानव बहुत ही पिछड़े, अन्ध-विश्वासी तथा सामाजिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रगतिशील नहीं होते। नाना प्रकार के दुःख उठाते हैं। इसलिए अज्ञानवादियों के जीवन में कुशलक्षेम नहीं है।' अज्ञानश्रेयोवादी अपने सिद्धान्त का निरूपण ज्ञान द्वारा क्यों करते हैं ?
दूसरी बात-अज्ञानवादी अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन ज्ञान से करते हैं। लेकिन (सम्यक् ) ज्ञान को कोसते हैं। अज्ञानश्रेयोवादी अज्ञान को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने का प्रयास करते हैं। वे सब विचारचर्चा ज्ञान (अनुमान आदि प्रमाणों तथा तर्क, हेतु, युक्ति) द्वारा करते हैं, यह तो 'वदतो व्याधात' जैसी बात है। वे अपने अज्ञानवाद को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए ज्ञान का सहारा क्यों लेते हैं ? ज्ञान का आश्रय लेकर वे अपने ही अज्ञानवाद का खण्डन करते हैं। उन्हें तो अपनी बुद्धि पर ताला लगाकर चुपचाप बैठना चाहिए। अज्ञानवाद सिद्धान्त के अनुशासन में चलकर तो उन्हें अज्ञानवाद के प्रशिक्षणार्थियों को अज्ञानवाद का उपदेश ज्ञान के द्वारा कतई न देना चाहिए। अज्ञानवादियों का ज्ञानवादियों पर आक्षेप और समाधान ___ परन्तु वे ज्ञान का आश्रय लेकर सम्यग्ज्ञानवाद का खण्डन करते हुए कहते हैं-"समस्त ज्ञानवादी पदार्थ का स्वरूप परस्पर विरुद्ध बताते हैं, इसलिए वे यथार्थवादी नहीं हैं। आत्मा को कोई नित्य, कोई अनित्य, कोई मूर्त, कोई अमूर्त, कोई सर्वव्यापी, कोई असर्वव्यापी, कोई हृदयस्थ, कोई अँगूठे के पर्व के आकार का मानता है। परस्पर एकमत नहीं हैं, ये सब ! किसका कथन प्रमाणभूत माना जाए, किसका नहीं ? जगत् में कोई अतिशयज्ञानी (सर्वज्ञ) भी नहीं कि उसका कथन प्रमाण माना जाए? कोई सर्वज्ञ हो तो भी उसे अल्पज्ञ जान नहीं पाता। इस कारण ज्ञानवादियों को वस्तु के यथार्थस्वरूप का ज्ञान न होने से वे पदार्थों का स्वरूप परस्पर विरुद्ध बताते हैं।"
१. (क) सूत्रकृतांग, श्रु. १, अ. १२, गा. २, विवेचन (आ. प्र. स., ब्यावर), पृ. ४०२ (ख) वृत्तिकार ने अज्ञानवादियों में एकान्त नियतिवादियों, अज्ञानश्रेयोवादियों, कूटस्थ नित्यवादियों तथा एकान्त क्षणिकवादियों में परिगणित किये हैं।
-सूत्रकृतांग, शीलांक वृत्ति, पत्र ३२-३४
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