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* मोक्ष से जोड़ने वाले : पंचविध योग ® ८७ 8
जाने से जो भी पूर्वकृत कर्मरूपी मल (आत्मा में चिरकाल से श्लिष्ट कर्ममल) होता है, वह उसी तरह भस्म (विशुद्ध) हो जाता है, जिस प्रकार अग्नि द्वारा तपाये हुए सोने (या चाँदी) की मलिनता दूर हो जाती है। उक्त धर्म-शुक्लादि ध्यान के प्रकाश से रागादि अन्धकार दूर हो जाता है। चित्त सर्वथा निर्मल हो जाता है और मोक्षमन्दिर का द्वार सम्मुख दिखाई देने लगता है। अधिक क्या कहें, ध्यानयोग आत्मा को उसके वास्तविक शुद्ध स्वरूप में प्रतिष्ठित करने का प्रबलतम साधन है।
आत्म-स्वातंत्र्य, परिणामों की निश्चलता और जन्मान्तर के आरम्भिक कर्मों का विच्छेद, ये तीन ध्यानयोग के मुख्य सुचारु फल हैं।'
योगी की शक्ति का उपयोग शुभ ध्यान में शुभ ध्यान आनन्द का प्रमुख हेतु है और अशुभ ध्यान आर्त्त-रौद्रत्व का; प्रत्येक व्यक्ति स्वयं सच्चिदानन्द है, उसमें सच्चिदानन्द को जाग्रत करने की शक्ति है। परन्तु भोयी और योगी मानव की अपेक्षा से शक्ति के प्रकटीकरण में अन्तर है। भोगी मानव इस सच्चिदानन्द शक्ति का उपभोग करता है, जबकि योगी मानव उपयोग रखता है, विवेकपूर्वक उपयोग करता है-सर्वकर्ममुक्ति की दिशा में। अतः भोगी मानव इस चैतन्य-शक्ति को आत-रौद्रध्यान में लगाकर उसका उपभोग (दुरुपयोग) कर पाता है, जबकि योगी = ध्यानयोगी शक्ति और चेतना का सम्यक् उपयोग करके आनन्द की अनुभूति करता है। भोगी के लिए शक्ति आनन्द में बाधक है, योगी के लिए साधक। - इसी दृष्टि से ध्यान के दो प्रकार बताये गये हैं-शुभ ध्यान और अशुभ ध्यान। भोगी की शक्ति का उपभोग अशुभ ध्यान में होता है, जबकि योगी की शक्ति का उपयोग होता है-शुभ ध्यान में। अशुभ ध्यान के दो भेद हैं-आर्तध्यान और रौद्रध्यान। इसी प्रकार शुभ ध्यान के भी दो भेद हैं-धर्मध्यान और शुक्लध्यान।
हम विस्तार से 'स्वाध्याय और ध्यान से कर्ममुक्ति' नामक निबन्ध में तथा ‘मोक्ष के साधन योग : बत्तीस योग-संग्रह/ध्यान प्रकार' शीर्षक निबन्ध में प्रकाश डाल चुके हैं।
धर्मध्यान के अधिकारी एवं उसके ध्याता के प्रकार धर्मध्यान के अधिकारी श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार सातवें से बारहवें
१. (क) सज्झाय-सुज्झाणरयस्स ताइणो, अपाव-भावस्स तवे रयस्स। विसुज्झइ जं सि मलं पुरेकडं, समीरियं रुप्पमलं व जोइणा॥
__ -दशवैकालिक, अ. ८, गा. ६३ (ख) 'जैनाग़मों में अष्टांगयोग' से भाव ग्रहण, पृ. १८ २. देखें-ध्यान के भेद-प्रभेद, स्वरूप, लक्षण, अनुप्रेक्षा, आलम्बन आदि की विस्तृत जानकारी के
लिए कर्मविज्ञान, भा. ७ में 'स्वाध्याय और ध्यान से कर्ममुक्ति' शीर्षक निबन्ध तथा 'मोक्ष के साधन योग : बत्तीस योग-संग्रह/ध्यान प्रकार' शीर्षक निबन्ध
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