________________
ॐ १७२ 3 कर्मविज्ञान : भाग ८ *
दृढ़ता होती है; कुटिलता, कट्टरता, पूर्वाग्रहग्रस्तता, साम्प्रदायिकता, गुणग्रहणविहीनता आदि नहीं। ___ अतः व्यवहारदृष्टि से भले ही सुदेव, सुगुरु एवं सुधर्म एवं सत्शास्त्र पर श्रद्धा हो या तत्त्वभूत पदार्थों पर श्रद्धा-विश्वास हो, किन्तु उन्हें साधन या अवलम्बन मानकर निश्चयदृष्टि से साध्यरूप आत्म-विश्वास, आत्म-ज्ञान या आत्म-विचार तथा आत्म-स्वरूपानुकूल आचरण दोनों को दृष्टिगत रखने पर मोक्षमार्ग समझना चाहिए। एकान्त ज्ञानवाद मोक्ष-प्राप्ति का साधन नहीं : क्यों और कैसे ?
कई एकान्त ज्ञानवादी कहते हैं कि हमें व्रत, नियम, त्याग, प्रत्याख्यान करने की अर्थात् हमें क्रिया (व्यवहारचारित्र-पालन) करने की कुछ भी आवश्यकता नहीं है; हम ज्ञान-मात्र से ही मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। ज्ञान से हम बन्ध-मोक्ष आदि सव तत्त्वों का स्वरूप जानते हैं। मोक्ष कैसे प्राप्त होता है? वह तो हमारी आत्मा की जानी-सुनी बात है। अतः क्रिया (चारित्र-पालन) की कोई जरूरत ही नहीं है। और फिर क्रिया तो अन्धी होती है। ज्ञानरहित क्रिया मोक्षफल प्राप्त नहीं करा सकती। अतः ज्ञान से ही मोक्ष प्राप्त होता है, यही बात यथार्थ है। इसी प्रकार के तथाकथित ज्ञानवादियों की मनोवृत्ति का उल्लेख 'उत्तराध्ययनसूत्र' में किया गया है--इस संसार (दार्शनिक जगत्) में कई (ज्ञानवादी) ऐसा मानते हैं कि पापकर्मों का त्याग किये बिना भी हमारे मत द्वारा प्ररूपित आचार को जानने और पालने से (अथवा हमारे आचार्य के कथनानुसार प्रवृत्ति करने से ही सर्वदुःखों से मुक्त सर्वकर्ममुक्त) हुआ जा सकता है।
यही कारण है कि कई सम्प्रदाय-व्यामोही लोगों ने अपने माने हुए सम्यग्दर्शन-सम्यक्चारित्ररहित कोरे ज्ञान को सम्यग्ज्ञान मानकर उसे वाह्यरूप दे दिया। और यह एकान्त प्ररूपण करना शुरू कर दिया कि हमारे सम्प्रदाय या सम्प्रदायाचार्य के अनुसार जानना, सोचना, उसी पर श्रद्धा करना और उसी के अनुसार आचरण करना सम्यक्त्व है, धर्म है या रत्नत्रय है। इसी मिथ्यात्व के आधार पर प्राचीनता-नवीनता का, क्रियाकाण्डों का, वेश-भूषा का, उपकरणों का, चिह्नों का तथा पूर्वाग्रहग्रस्त एकान्त स्व-मान्यता का मिथ्याग्रह और संघर्ष करना, जिससे कतिपय बड़े-बड़े साधक, जो चले थे-वीतरागता तथा सर्वकर्ममुक्ति प्राप्त करने, किन्तु इस प्रकार वे कषाय-नोकषायों तथा राग-द्वेष-मोहादि मिथ्याग्रहों के भँवरजाल में पड़ गए। ऐसे तथाकथित ज्ञानवादी राग-द्वेष-कषाय आदि पापकर्मों का त्याग किये बिना केवलज्ञान वघारने वालों के लिए शास्त्र में कहा है-(ज्ञान का गर्व करने वाले यह नहीं जानते कि) केवल विभिन्न भाषाओं का ज्ञान आत्मा को कर्मबन्ध और उसके कटुफल से नहीं बचा सकता। फिर विविध विद्याओं (न्याय, व्याकरण, छन्द, कोश, दर्शन, मंत्र-तंत्रादि विद्याओं, अवधानादि की शिक्षाओं) का
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org