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* मोक्ष : क्यों, क्या, कैसे, कब और कहाँ ? १२९
सुन्दर - सुसज्जित महल हैं, न ही सैर करने के लिए बाग-बगीचे हैं, न ही दूर - सुदूर जाने या घूमने लिए कार, बस, ट्रेन, विमान आदि हैं। वहाँ बातचीत करने तथा अपनी बात दूसरे से कहने के लिए कोई भाई-बन्धु नहीं हैं। न ही सुन्दर स्त्रियाँ हैं काम-सुख प्राप्त करने के लिए। कुछ भी तो नहीं है वहाँ पर सूनसान है। मुख बंद किये बैठे रहना है, गुमसुम, मानो पत्थर का बुत बनाकर बिठा दिया गया हो। कहते हैं- उनके पास अनन्त ज्ञान है। पर किस काम का वह ज्ञान, जो दूसरों की भलाई के काम में न आ सके ? आज के प्रगतिशील युग में विज्ञान के नित नये चमत्कार दिखाई दे रहे हैं, जबकि उन मोक्षवासियों का ज्ञान केवल अपने में ही सीमित रहता है, कोई चमत्कार नहीं दिखाता । शून्य स्थान में अकेले पड़े रहना है। अपना सुख-दुःख सुनाने के लिए भी तो कोई नहीं है ? निकम्मे होकर खाली बैठे रहना है वहाँ। अतः हमारी कल्पना में मोक्ष एक प्रकार की नजरबंद कैद है लम्बे काल तक । क्या सुख है वहाँ मनुष्य को ?
ऐसा मोक्ष नहीं चाहिए मुझे ! "मुझे तो कोई बड़ा राजपाट भी दक्षिणा में दे और कहे कि भोक्ष ले लो, तो मुझे यह सौदा अत्यन्त घाटे का लगता है । "
वर्तमान में भी क्या कमी है, मेरे पास ? सभी तरह के सुखभोग के साधन हैं। बड़े-बड़े प्रासाद, बहुमूल्य वस्त्राभूषण, बैठने को सोफासेट, सोने को बढ़िया गद्देगार पलँग, खाने-पीने के लिए स्वादिष्ट से स्वादिष्ट व्यंजन और पेय, देवांगना सरीखी स्त्री, देव सरीखे सुन्दर सलौने बालक । सैर-सपाटे के लिये कार, मोटर व जहाज ! क्या नहीं है यहाँ जो मैं इस सुखमय स्थान को छोड़कर एक शून्य स्थान में जाऊँ और चमगादड़ की तरह लटककर बैठ जाऊँ ? इन सुख-साधनों में से एक भी साधन नहीं है वहाँ पर !
मोक्ष के विषय में असंगत कल्पनाएँ
• आज का बुद्धिजीवी इस परोक्ष काल्पनिक मोक्ष के विषय में ऐसा सोच सकता है. क्योंकि मोक्ष में जाने वाला व्यक्ति इस शरीर से, संसार के सभी रिश्ते-नातों से, सांसारिक बातों से सदा के लिये सम्बन्ध तोड़कर अशरीरी बनकर जाता है। मोक्ष प्राप्त व्यक्ति- फिर लौटकर इस दृश्यमान संसार में कभी नहीं आता, न ही इस भावसंसार से कोई वास्ता रखता है। अतः मोक्ष में जाने का स्पष्ट अर्थ है-न इस दुनियाँ में आना, न सगे-सम्बन्धियों से मिलना-जुलना, वहाँ बैठे-बैठे ऊब जाए तो मन बहलाव की कोई चीज नहीं, न संगीत, न नृत्य, न वाद्य और न ही कोई कहानी । बात करने और सलाह देने वाला भी कोई नहीं। वहाँ न तो अपने सुख-दुःख की बात किसी से कही जाती है, न सुनी जाती है।
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