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ॐ १५८ ७ कर्मविज्ञान : भाग ८ ® मोक्षमार्ग पर श्रद्धापूर्वक गति-प्रगति करना मुमुक्षु का कर्त्तव्य ___ इसलिए अध्यात्म-विकास के चरम शिखररूप सर्वकर्मक्षय लक्षण मोक्ष के यात्री के साँस की प्रत्येक धड़कन में मोक्ष के यथार्थ मार्ग का स्पन्दन तथा उस पर चलने का उत्साह होना चाहिए। उसके तन-मन-वचन और प्राण में प्रतिपल मोक्षमार्ग सक्रिय दिखाई देना चाहिए। जैसे कि 'समयसार कलश' में कहा गया है
"एको मोक्षपथो स एव नियतो दृग्-ज्ञप्ति-वृत्यात्मकः। तत्रैव स्थितिमेति यस्तमनिशं ध्यायेच्च तं चेतसि॥ तस्मिन्नेव निरन्तरं विहरति, द्रव्यान्तराण्यस्पृशन्। . ..
सोऽवश्यं सारमचिरान्नित्योदयं बिन्दन्ति ।।२४०॥ अर्थात दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप यही एक मोक्षमार्ग निश्चित है। जो व्यक्ति उसी में स्थित रहता है, उसी का निरन्तर ध्यान करता है, उसी में निरन्तर विहरण करता है, अन्य द्रव्यों (जीव के सिवाय) का स्पर्श भी नहीं करता, वह अवश्य ही नित्य उदित रहने वाले समय (आत्मा) के सारभूत (मोक्ष). को शीघ्र ही प्राप्त कर लेता है, अर्थात् उसे शीघ्र ही मोक्ष-प्राप्ति होती है।
जैसे राजमार्ग पर लगा हुआ माइल का पत्थर यात्री को उत्साहपूर्वक अपनी मंजिल की ओर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। उससे यात्री को अपनी मंजिल निकट आने की प्रतीति हो जाती है। वह उस मार्ग की-रास्ते की यथार्थता से भी परिचित और निश्चित होकर बेखटके आगे कूच करता जाता है। इसी प्रकार मोक्षमार्ग पर लगे अध्यात्म-विकास की गति-प्रगति के सूचक गुणस्थानरूपी पाषाण भी मोक्षयात्री को निश्चित होकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। उसे अपने मोक्ष-लक्ष्य की निकटता और मोक्षमार्ग की यथार्थता की प्रतीति होने से वह बेधड़क होकर गति-प्रगति करता जाता है। यही कारण है, मोक्षयात्री के लिए मोक्षमार्ग को जानने, मानने तथा श्रद्धापूर्वक उस पर गति-प्रगति करने का बहुत बड़ा महत्त्व है। मोक्षमार्ग को जानने, मानने और उस पर गति-प्रगति करने से मुमुक्षु साधक शुद्ध साधनों से शुद्ध साध्य (मोक्ष) को अविलम्ब या देर-सबेर प्राप्त कर ही लेता है। मोक्षमार्गी साधकवर्ग के लिए साधना के १३ सूत्र ___ वैसे तो मोक्षयात्री चतुर्थ गुणस्थान से मोक्षमार्ग पर अपनी यात्रा शुरू करता है
और पंचम गुणस्थान में देशविरति (विकल चारित्र) तथा छठे गुणस्थान में सर्वविरति (सकल चारित्र) का स्वीकार करता है। यद्यपि चतुर्थ और पंचम गुणस्थान वाले गृहस्थ साधक भी भाव मोक्षमार्ग स्वीकार करके मोक्ष की मंजिल पा सकते हैं, तथापि इन दोनों गुणस्थानवर्ती सभी गृहस्थ साधकवर्ग के लिए इस भाव मोक्षमार्ग को जानने-मानने पर भी उसे पूर्णतया आचरण में लाना दुर्लभ या कठिन
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