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• मोक्षमार्ग का महत्त्व और यथार्थ स्वरूप १५७
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भव्य जीवों को संसार से निर्याण कराने = बाहर निकालने वाला मार्ग है, अथवा निरुपम यान स्थान यानी मोक्षपद (स्थान) प्रापक मार्ग है। यह निर्वाणमार्ग भी है अर्थात् सकल कर्मक्षय होने पर आत्मा को कभी नष्ट न होने वाला आध्यात्मिक आत्यन्तिक सुख निर्वाण है, उसका मार्ग है। अथवा यह आत्मा को पर - परिणति से हटाकर या कर्मरोग से मुक्ति दिलाकर स्व-परिणति में = स्व-स्वरूप में स्थित करने वाला आत्म-स्वास्थ्यरूप निर्वाण का मार्ग है। यह मोक्षमार्ग अवितथ है, अर्थात् असत्य से सर्वथा दूर है, पूर्णरूपेण सत्य है। असंदिग्ध है = संदेह से सर्वथा रहित है - यह मोक्षमार्ग । अथवा यह अविसन्धिरूप है, यानी अनन्तकाल से निरन्तर अविच्छिन्नरूप है। यह आत्मा का शाश्वतधर्म या मार्ग है और अन्त में वह मोक्षमार्ग सर्वदुःख प्रहीणरूप मोक्ष का मार्ग = कारण है । सांसारिक सुख की इच्छा की पूर्ति में दुःख छिपा हुआ होता है। फलतः दुःखों का सर्वथा अभाव मोक्ष में ही हो सकता है, अन्यत्र नहीं। और वह सर्वदुःख मुक्तिरूप मोक्ष का साक्षात्कार करा देने वाला है। इस पर से सहज ही समझा जा सकता है निर्ग्रन्थ प्रवचन ( जैनधर्म) सम्मत मोक्षमार्ग की कितनी विशेषता, महत्ता और अनिवार्यता है ? १
१. (क) श्रमणसूत्र के अन्तर्गत प्रतिज्ञासूत्र का मूल पाठ
(ख) देखें- 'श्रमणसूत्र' (उपाध्याय अमर मुनि ) में इनकी व्याख्या, पृ. ३२२-३२७
(ग) सद्भ्यो भव्येभ्यो हितं सच्चं, सद्भूतं वा सच्चं ।
品
(घ) केवलियं - केवलं अद्वितीयं - एतदेवैकं हितं ।
नान्यद् द्वितीयं प्रवचनमस्ति, केवलिणा वा पण्णत्तं केवलियं ॥ - आवश्यकचूर्णि (आ. जिनदासं)
(ङ) पडिपुण्णं = प्रतिपूर्णं अपवर्गप्रापकैर्गुणैर्भृतमिति । (च) नैयायिकं = नयनशीलं-मोक्षगमकमित्यर्थः ।
निश्चितआयोलाभो न्यायो मुक्तिरित्यर्थः स प्रयोजनमस्येति नैयायिकः ।
(ज) सिद्धिः स्वात्मोपलब्धिः ।
-आचार्य जिनदासकृत आवश्यकचूर्णि
- उत्तराध्ययन वृत्ति, अ. ४, गा. ५
न्यायेन चरति नैयायिकम्, न्यायाबाधितमित्यर्थः । - आवश्यकचूर्णि (छ) कृन्ततीति कर्तनम् शल्यादीनि मायादीनि तेषां कर्तनं भव-निबन्धन
मायादिशल्यच्छेदकमित्यर्थः ।
(ठ) सव्व- दुक्ख-पहीण मोक्षस्तत्कारणमित्मर्थः।
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- आवश्यक हारि. वृत्ति
- वही
सेधनं सिद्धिः हितार्थप्राप्तिः।
(झ) मुक्तिः निर्मुक्तता-निःसंगता । मुक्तिः अहितार्थ-कर्म-विच्युतिः । (ञ) निरुपमं यानं निर्याणं- मोक्षपदं ईषत्प्राग्भाराख्यं स्थानमित्मर्थः । - आवश्यक हारि वृत्ति निर्याणं-संसारात् पलायनं = संसारात् निर्गमनमित्यर्थः । - आवश्यकचूर्णि (जिनदास) (2) निर्वृति: निर्वाण-सकलकर्मक्षयजमात्यन्तिकं सुखमित्यर्थः ।
निव्वाणं निव्वंत्ती - आत्म-स्वास्थ्यमित्यर्थः ।
मग्गं
सर्व-दुःखप्रहीणमार्गः
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- मूलाराधना टीका
- आवश्यक हारि. वृत्ति
- आवश्यकचूर्णि
- आवश्यक हारि. वृत्ति
- आवश्यकचूर्णि सर्वदुःख
- आवश्यक. हारि. वृत्ति
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